यहां छात्रों की स्थिति सरकार के शिक्षा नीति के मजबूत दावे को खोखला साबित करने के लिए काफी है। यहां दो कमरे हैं, इनमें से एक कमरे में रसोई घर संचालित है व दूसरे में कक्षा एक से 8वीं तक की कक्षाएं संचालित होती हैं। ऐसी स्थिति में विद्यार्थियों को बाहर बैठकर पढ़ाई करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। 8 कक्षाओं का संचालन दो छोटे-छोटे कमरों में कैसे हो सकता है। यही स्थिति छात्र, अभिभावक के साथ-साथ शिक्षकों के लिए भी परेशानी का सबब बनी हुई है। शिक्षकों द्वारा संबंधित विभाग को कई बार पत्र लिखा जा चुका है, लेकिन अब तक इस समस्या को हल करने वाला कोई भी अधिकारी सामने नहीं आया हैं।
नेता व जिमेदार अफसरों को फर्क नहीं
जब राजनीतिक दल सरकार बनाने के लिए अपने घोषणा पत्र जारी करते हैं, उसमें शिक्षा को लेकर तमाम दावे किए जाते हैं। क्षेत्र के बालापुरा डांग स्कूल के एक कमरें में 8 कक्षाएं संचालित की जा रही हैं। ऐसे में बच्चे क्या सीख सकते हैं? यह सवाल जिमेदार अफसरों को सोचने के लिए मजबूर कर सकता हैं, यही नहीं सरकारी स्कूलों के बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए बड़े बड़े दावे करने वाले अफसर फिलहाल मौन हैं। कभी बजट न होने का रोना रोया जा रहा है तो कभी जमीन न मिलने की समस्या बताकर पल्ला झाड़ा जा रहा है। बालापुरा डांग स्कूल 8वीं तक संचालित है, जिसमें वर्तमान में 53 बच्चों को नामांकन है, जो कि तीन सत्रों से लगातार घटता जा रहा है। स्कूल में सिर्फ दो कमरे हैं, जिनमें से एक में रसोई घर संचालित हैं। पढ़ाई के लिए मात्र एक कमरा ही उपलब्ध हैं। विद्यालय भवन के चारो ओर आबादी क्षेत्र हैं। स्कूल गेट के सामने से गांव का मुख्य रास्ता गुजरता है और दिनभर वाहनों की आवाजाही बनी रहती हैं। इससे बच्चों के साथ दुर्घटना का खतरा बना रहता हैं।
ब्लॉक एवं ग्राम पंचायत कें सभी अधिकारियों को जमीन आवंटन के लिए कई बार अवगत करवाया जा चुका है, लेकिन स्थिति जस की तस है। स्कूल में पांच का स्टॉफ है, जो कि एक कमरे में नियमित कक्षाएं नही ले पाते हैं। परिणामस्वरूप नामांकन लगातार घटता जा रहा है।
प्रर्मिला गुप्ता, संस्था प्रधान