सुबह आंख खुलने से पहले लोग अपने आसपास देखते है कि मोबाइल कहां है। रात में किए गए पोस्ट पर कमेंट व लाइक्स कितने आए, यह भी एक लत भी बन चुकी है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर यूजर्स इसी सोच में डूबे रहते हैं कि किसने कमेंट और लाइक किया है। यह प्रवृत्ति खासकर युवाओं में हावी हो रही है। जो उनके स्टडी के लिए नुकसानदेह हो रही है। साथ ही परिवार के लिए दिया जाने वाला समय भी घटा रही है।
यहां से करे शुरुआत सुबह उठते ही सोशल मीडिया को देखने से दूरी बनाएं। यह आदत एक दो दिन में नही बदलेगी। लेकिन शुरुआत कर दी जाए तो धीरे-धीरे परिवर्तन आता जाएगा। परिवार के एक सदस्य यह आदत अपना लें तो अन्य को प्रेरित करते हुए बार-बार मोबाइल देखने और सोशल मीडिया पर घंटों तक समय बिताने को कम किया जा सकता है। चिकित्सा विशेषज्ञ बताते है कि रात में भी सोने से एक घंटे पहले मोबाइल को बंद कर दें। नोटिफिकेशन रात्रि में बंद करके सोने से सुकून की नींद आएगी। विशेषज्ञ बताते है कि पोस्ट पर कमेंट और लाइक नहीं आए तो तनाव बढ़ जाता है। यह तनाव बेवजह है, जो आगे जाकर गंभीर भी हो सकता है। ऐसे में विशेष रूप से युवाओं ओर बच्चों को मोबाइल के उपयोग करने पर परिवार को नियंत्रण करने की जरूरत भी है। ऐसा इसलिए जरूरी है कि पोस्ट पर लाइक नहीं आने पर खुद को असहज महसूस करते हैं और आत्मविश्वास में कमी आने लगती है।
टाइम कंट्रोल करे
मोबाइल पर बीतने वाले समय को कंट्रोल करने की जरूरत है। सोशल मीडिया पर रील आदि ऐसे हैं, जिसमे देखने वाले को भी पता नहीं चलता है कि समय कितना हो गया है। मोबाइल के इस्तेमाल को कम करने के लिए टाइम लिमिट तय की जाए। इसके लिए आजकल कई तरह के एप भी आ चुके है जो यूजर्स को इसके प्रति आगाह करते हैं।
मोबाइल की लत को चिकित्सीय भाषा में नमोफोबिया कहा जाता है। इसके लक्षण कई तरह के हो सकते हैं। जैसे क्रोधित होना, चिड़चिढ़ापन, घबराहट, मन नहीं लगना, बैचेनी, हाथ-पैरों में कंपन, नींद नहीं आना प्रमुख हैं। इसके लिए हमें ही खुद से वादा करना होगा कि हम धीरे-धीरे मोबाइल पर व्यतीत किए जाने वाले समय को घटाएं। शहर में भी अब इस तरह के मामले लेकर अभिभावक व छात्र, युवा पहुंचने लगे हैं।
डॉ. अनुराग खींची, न्यूरो साइकेट्रिस्ट, जिला अस्पताल
मोबाइल एडिक्शन की लत बहुत बड़ी समस्या है। 90 प्रतिशत बच्चे इससे प्रभावित हैं। इससे आंखों में जलन, आंखों की रोशनी कम होने की शिकायत हो सकती है। इसके लिए प्रतिदिन मोबाइल देखने का समय फिक्स करें। जब जरूरत हो तब ही मोबाइल देखें। कभी नींद नहीं आए तो सोते समय मोबाइल हाथ में नही लें।
डॉ. नीरज शर्मा, चिकित्सा अधिकारी एवं मनोचिकत्सक