बाराबंकी

कोरोना से निपटने के लिए 123 साल पुराना अधिनियम लागू, 1897 में प्लेग के लिए बना था

भारत में इस महामारी से निपटने के लिए महामारी अधिनियम – 1897 लागू किया गया है…

बाराबंकीApr 06, 2020 / 08:27 am

नितिन श्रीवास्तव

कोरोना से निपटने के लिए 123 साल पुराना अधिनियम लागू, 1897 में प्लेग के लिए बना था

बाराबंकी. कोरोना वायरस (कोविड-19) के संक्रमण ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है और विश्व भर में सरकारें अपने-अपने तरीके से इससे निपटने के प्रयास कर रही हैं। भारत में इस महामारी से निपटने के लिए महामारी अधिनियम – 1897 लागू किया गया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिवक्ता हेमंत द्विवेदी का कहना है कि एपीडेमिक डिजीज एक्ट-1897 (महामारी अधिनियम 1897) 123 साल पुराना अधिनियम है जिसे अंग्रेजों के ज़माने में लागू किया गया था, जब भूतपूर्व बम्बई स्टेट में बूबोनिक प्लेग ने महामारी का रूप लिया था। इस अधिनियम की केवल 4 धाराएं हैं।
क्या कहता है एक्ट

इस अधिनियम का उपयोग उस समय किया जाता है जब किसी भी राज्य या केंद्र सरकार को इस बात का विश्वास हो जाए कि राज्य व देश में कोई बड़ा संकट आने वाला है,कोई खतरनाक बीमारी राज्य या देश में प्रवेश कर चुकी है और समस्त नागरिकों में फ़ैल सकती है। ऐसी स्थिति में केंद्र व राज्य दोनों इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू कर सकते हैं। कोविड-19 से निपटने के लिए केंद्रीय सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस कानून के खंड-दो को लागू करने का निर्देश दिया है।
महामारी अधिनियम, 1897 की धारा (2) की मुख्य बातें

महामारी अधिनियम 1897 के लागू होने के बाद सरकारी आदेश की अवहेलना अपराध है। लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों पर इस अधिनियम के तहत कार्रवाई हो सकती है। इसमें आईपीसी की धारा-188 के तहत सजा का प्रावधान है। यह कानून अधिकारियों को सुरक्षा भी प्रदान करता है।
यह केंद्र और राज्य सरकारों को विशेष अधिकार देता है जिससे सार्वजनिक सूचना के जरिये महामारी प्रसार की रोकथाम के उपाय किये जा सकें।

यात्रियों का निरीक्षण करने का अधिकार अधिनियम की धारा 2 की उपधारा 2 (बी) के अनुसार है। राज्य सरकार हर तरह की यात्रा से आने वाले यात्रियों का निरीक्षण करने में प्रक्रिया विकसित कर सकती है तथा निरीक्षक नियुक्त कर सकती है। जिन लोगों पर निरीक्षक को यह संदेह होता है कि वह संक्रमित रोग से पीड़ित हैं, निरीक्षक उन लोगों को अस्पताल या अस्थाई आवास केंद्र पर ले जा सकते हैं।
सरकार को अगर पता लगे कि कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह महामारी से ग्रसित है तो उन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास मेंरखने का अधिकार होता है।

राज्य सरकार रेलवे या अन्य माध्यमों से अन्यथा यात्रा करने वाले व्यक्तियों के निरीक्षण के लिए उपाय कर सकती है और नियमों का पालन करवा सकती है। ऐसी बीमारी के संदिग्ध व्यक्तियों या किसी के संक्रमित होने पर अस्पताल में या अस्थायी रूप से अलग रखा जा सकता है।
महामारी एक्ट – 1897 के सेक्शन 3 में जुर्माने का प्रावधान भी है जिसमें सरकारी आदेश नहीं मानना अपराध होगा और आईपीसी की धारा 188 के तहत सजा भी मिल सकती है। इसके अंतर्गत 6 माह तक की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है।
महामारी एक्ट में सरकारी अधिकारियों को इस अधिनियम को लागू करवाने के लिए कानूनी सुरक्षा का भी प्रावधान है।

पहले भी लागू हुआ है एक्ट

भारत में कई बार महामारी या रोग फैलने की दशा में यह एक्ट लागू किया जा चुका है। सन 1959 में हैजा के प्रकोप को देखते हुए उड़ीसा सरकार ने पुरी जिले में ये अधिनियम लागू किया था। साल 2009 में पुणे में जब स्वाइन फ्लू फैला था तब इस एक्ट के सेक्शन 2 को लागू किया गया था। 2018 में गुजरात के वडोदरा जिले के एक गाँव में 31 लोगों में कोलेरा के लक्षण पाये जाने पर भी यह एक्ट लागू किया गया था। सन 2015 में चंडीगढ़ में मलेरिया और डेंगू की रोकथाम के लिए इस एक्ट को लगाया जा चुका है। 2020 में कर्नाटक ने सबसे पहले कोरोना वायरस से निपटने के लिए महामारी अधिनियम, 1897 को लागू किया।
आजकल कोविड-19 महामारी फैलने की आशंका के मद्देनजर राज्य सरकार ने 14 अप्रैल तक सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक, शैक्षणिक, खेल, पारिवारिक प्रकृति के किसी भी आयोजन पर प्रतिबंध लगाने के लिए महामारी रोग अधिनियम 1897 को लागू किया है।

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