मंदिर का इतिहास
मंदिर निर्माण के काल का ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। तीसरी सदी से पूर्व का माना गया है। मंदिर क्षेत्र में विक्रम संवत 1540 का एक शिलालेख मिला है। शिलालेख के अनुसार अनुमान है कि यह मंदिर सम्राट कनिष्क के काल से पूर्व का है। मंदिर की दूरी बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर है। गुजरात, मालवा और मारवाड़ के शासक त्रिपुरा सुन्दरी के उपासक थे। गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह की यह इष्ट देवी रही। यहां प्राचीन खंडहरों के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि विदेशी आक्रांताओं ने इस क्षेत्र के मंदिरों को भी नष्ट किया।
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यहां बड़ी-बड़ी हस्तियां आईं
चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में यहां शक्ति पूजन के अनुष्ठान होते हैं। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु सहित कई राजनेता व अन्य हस्तियां दर्शनार्थ आते हैं। बीते वर्षों में मातारानी के दर्शनार्थ पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, सहित कई राजनेता व फिल्म सितारे इस शक्ति पीठ पर आए हैं।
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पहले कहते थे तरताई माता
आरंभ में इसे तरताई माता के नाम से जाना जाता था। मंदिर क्षेत्र शांत तथा दर्शनीय स्थल है। यहां राजस्थान एवं पड़ोसी गुजरात व मध्यप्रदेश से प्रतिवर्ष श्रद्धालु आते हैं। माता से मनोतियां मांगते हैं और मांगी गई मुराद पूरी होने पर धार्मिक आयोजनों की धूम रहती है।