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राजस्थान में इस जाति के लोगों ने दिया था महाराणा प्रताप को वचन, पीढिय़ां बदल गई लेकिन आज भी निभा रहे कसम

महाराणा प्रताप के सम्मुख ली थी सौगंध

बांसवाड़ाJun 25, 2018 / 02:46 pm

Ashish vajpayee

banswara

राजस्थान में इस जाति के लोगों ने दिया था महाराणा प्रताप को वचन, पीढिय़ां बदल गई लेकिन आज भी निभा रहे कसम

बांसवाड़ा. बदलते समय के साथ परंपराएं और वचनों का मोल लुप्त सा हो गया है। व्यक्ति आधुनिकता और भौतिकवाद से घिर सा गया है। इसके उपरांत भी हमारे समाज में एक जाति ऐसी भी है, जिनकी पीढिय़ां बदल गई, लेकिन वचन नहीं टूटा। यह जाति प्रदेश में घुमक्कड़ जाति के रूप में पहचाने जाने वाले गाडिय़ा लोहार की है, जो अपने पूर्वजों के वचनों को आज तक निभा रही है और धरोहर के रूप में अपने साथ बैलगाड़ी रखती है। यह बैलगाड़ी उनके लिए पूजनीय और जीवन का आधार है। रुपए पैसे लेकर घर के समान को संजोने वाली बैलगाडिय़ां आज भी इन परिवारों के पास हैं।
प्रताप को दिए थे वचन
गाडिय़ा लोहार के पूर्वजों के द्वारा ली गई सौंगध को निभाते हुए समाज के सैकड़ों-हजारों लोग सडक़ों, मैदानों में अस्थाई रूप से रहते हैं। हल्दीघाटी युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप के प्रबल सहयोगी की भूमिका निभाने वाली यह जाति विषम परिस्थितियों में भी पूर्वजों के द्वारा लिए गए वचनों पर अडिग है। समय के साथ हुए बदलाव ने रहन-सहन और व्यवसाय प्रभावित जरूर किया है, लेकिन बैलगाड़ी इनके लिए शान की बात है।
स्वयं ही बनाते थे बैलगाड़ी
सुरवानिया तालाब के पास निवासरत गाडिय़ा लोहारों ने बताया कि बैलगाडिय़ां हमेशा से उनके परिवारों का हिस्सा रही हैं। ये गाडिय़ां उनके द्वारा ही बनाई जाती थी। इन्हें कभी खरीदा नहीं गया। यह बैलगाड़ी पूजनीय है। पूर्व में समाज के लोग इन्हीं गाडिय़ों में सफर करते थे, इसलिए आज भी ये अहम हैं।
लोहे और लकड़ी से निर्मित
कुछ गाडिय़ा लोहार परिवार बैलगाडिय़ों को लोहे से बनाते हैं तो कुछ लकड़ी से। इनका कहना है कि कई परिवार अब स्थाई रूप से निवास करने लगे हैं। परिवार को बैलगाड़ी से इधर-उधर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। परम्परा को निभाने के लिए पहियों से लेकर पूरी गाड़ी लोहे की बनाते हैं। वहीं, जो परिवार आज भी घुमक्कड़ हैं, वे लकड़ी की गाडिय़ों का इस्तेमाल करते हैं।
पूरा का पूरा घर बैलगाड़ी
समाज के मि_ूलाल ने बताया कि उनके परिवारों के पास जो बैलगाड़ी रखी जाती है, वो एक प्रकार से पूरा घर थी। उसमें गृहस्थी के पूरे सामान के साथ ही रुपए-पैसे भी रखे जाते थे। विशेष प्रकार से बनाए जाने के कारण उसमें सारा सामान आ जाता था। प्रत्येक घर में आज भी बैलगाड़ी मिलेगी। चाहें वो स्थाई निवासरत हो या घुमक्कड़ परिवार।
बैलगाड़ी हमारी शान
गाडिय़ा लोहार परिवारों में से ईला ने बताया कि समाज के प्रत्येक परिवार के लिए बैलगाड़ी रखना शान और परंपरा का निर्वहन करना है। यह वो गाड़ी है जो हमारा घर है। रुपए-पैसे, जेवर से लेकर घर का पूरा सामान इन्हीं पर रखकर पूर्वज इधर-उधर जाते थे। स्थाई रूप से आशियाना बना लेने के बाद भी समाज के लोग घरों में बैलगाड़ी रखते हैं।
आज भी लोहारी का काम
सुरवानिया डेम के पास बरसों से रहे गाडिय़ा लोहार परिवार की सुराणा पत्नी जगनाथ ने बताया कि उनका परिवार आज भी पुश्तैनी काम कर रहा है। मशीनरी युग आने के बाद काम की पूछ कम हो गई है। इस कारण पैसों का अभाव रहता है। परिवार का भरणपोषण करने के लिए युवा अन्य कार्य करते हैं। ऐसी दिक्कतों के कारण एक जगह रहना मजबूरी है।
यह दिए थे वचन
रास्ते में पड़ी कोई वस्तु नहीं उठाएंगे
किसी का खेत नहीं काटेंगे/मेहनत की कमाई से परिवार का पालन पोषण करेंगे
पत्थरों या मिट्टी के बर्तनों में भोजन करेंगे
बैलगाड़ी में खटिया उल्टी रख यात्रा करेंगे
(जैसा कि गाडिय़ा लोहारों ने बताया)

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