आचार्य ने सभी को आत्मा में रत रहकर स्वयं का एवं औरों का कल्याण करने की प्रेरणा दी। प्रवचन में एक कथानक के माध्यम से आचार्य ने कहा कि व्यक्ति को किसी दूसरे का अधिपति न बनकर स्वयं का अधिपति बनना चाहिए। व्यक्ति अगर संयम के माध्यम से इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ले तो वह परम आनंद की ओर अग्रसर हो जाता है।
प्रवचन में नीता गादिया, शांतिलाल पोरवाल, देवराज रायसोनी, बाबूलाल बाफणा ने विचार रखे।
गौरतलब है कि आचार्य महाश्रमण के अब तक के चातुर्मासों में सर्वाधिक मासखमण बेंगलुरु चातुर्मास के दौरान हुए। संचालन मुनि सुधाकर ने किया।
गौरतलब है कि आचार्य महाश्रमण के अब तक के चातुर्मासों में सर्वाधिक मासखमण बेंगलुरु चातुर्मास के दौरान हुए। संचालन मुनि सुधाकर ने किया।