सभी अनुभव हमें अपने अतीत में मिले हैं-आचार्य देवेन्द्र सागर
बेेंगलूरु. आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने राजस्थान जैन संघ जयनगर में ्रकहा कि सत्य की हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से अनुभूति करता है। उसे किसी संगठन, पंथ, हठधर्मिता, पुरोहितों, कर्मकांडों, दार्शनिक ज्ञान या तकनीक के जरिए नहीं पाया जा सकता। मनुष्य की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि होश संभालने से लेकर अब तक की उम्र तक के तमाम अनुभवों, दिमाग पर पड़े प्रभावों, जिन लोगों से वह मिला, जैसी घटनाओं को उसने देखा, जैसे अनुभवों से वह गुजरा-उनके आधार पर वह अपनी छवि बना लेता है। इनके जरिए फिर वह अपनी राजनीतिक, धार्मिक और निजी सुरक्षा सुनिश्चित करने की कोशिश करता है। ये छवियां उसके लिए सतत एक संघर्ष, बोझ बनकर उसे परेशान करती हैं। क्योंकि जीवन तो हर पल बिल्कुल नए समीकरणों के साथ आता है। इस एकदम नए जीवन को जीने के लिए जरूरी है कि आप भी उतने ही नए बनें। अगर आप इस नए पल में पुरानी छवियों के मुताबिक जीना चाहेंगे, तो आपको तकलीफ होगी ही, संघर्ष करना ही पड़ेगा। इसलिए जरूरी है कि आप अपने दिमाग से अपने अतीत को पूरी तरह पोंछ दें। मनुष्य अपनी चेतना में जमा की गई संपूर्ण सामग्री से पूरी तरह मुक्त होकर ही हर नए पल को जी सकता है। आचार्य ने कहा कि समय सोच है। सोचना अनुभव और ज्ञान से जन्म लेता है। और दोनों ही समय और अतीत से जुड़े हुए हैं। हमारे सभी अनुभव हमें अपने अतीत में मिले हैं और उन्हीं से हमारा ज्ञान बना है।