बैंगलोर

कर्नाटक कांग्रेस में अनिश्चितता का माहौल, आलाकमान ने साधी चुप्पी

मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) के वैकल्पिक भूखंड आवंटन मामले में मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या के खिलाफ लोकायुक्त और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के एफआइआर दर्ज करने के बाद सत्तारूढ़ कांग्रेस में अनिश्चितता का माहौल है। वहीं, पार्टी हाइकमान की चुप्पी से न सिर्फ कई सवाल खड़े हो रहे हैं बल्कि, मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या अपने बचाव के लिए हमेशा […]

बैंगलोरOct 09, 2024 / 05:17 pm

Rajeev Mishra

Former CM Siddaramaiah addressing a press conference at his residence Cauvery, in Bengaluru on Friday 23rd August 2019

मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) के वैकल्पिक भूखंड आवंटन मामले में मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या के खिलाफ लोकायुक्त और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के एफआइआर दर्ज करने के बाद सत्तारूढ़ कांग्रेस में अनिश्चितता का माहौल है। वहीं, पार्टी हाइकमान की चुप्पी से न सिर्फ कई सवाल खड़े हो रहे हैं बल्कि, मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या अपने बचाव के लिए हमेशा की तरह स्थानीय स्तर पर समर्थन जुटाने लगे हैं।
मुडा मामला सामने आने के बाद कांग्रेस के शीर्ष चार नेता लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल और प्रदेश मामलों के प्रभारी महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या और उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के साथ दिल्ली में दो बार मुलाकात की। इस दौरान मुडा मामले को लेकर योजनाएं बनी और रणनीतियों पर चर्चा हुई। लेकिन, उसके बाद कर्नाटक उच्च न्यायालय का आदेश आया जिसमें मुख्यमंत्री के खिलाफ अदालत ने कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और प्रवर्तन निदेशालय ने भी हस्तक्षेप करते हुए मामला दर्ज कर लिया। इन दोनों घटनाओं के बाद से पार्टी आलाकमान ने चुप्पी साध ली है और मुद्दे से दूरी बना ली है। यह सिद्धरामय्या के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाली हैं। हरियाणा चुनावों के दौरान कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक रैलियों में मुडा मामले को उठाया और सिद्धरामय्या के बहाने कांग्रेस पर हमला बोला। लेकिन, ना तो राहुल गांधी और ना ही मल्लिकार्जुन खरगे ने सिद्धरामय्या का बचाव किया।
उभरने लगे हैं असंतोष के सुर
दरअसल, पार्टी के भीतर भी दबी जुबान में मुख्यमंत्री के खिलाफ आवाजें उठनी लगी हैं। कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि, पिछले ढाई महीने से पूरा मंत्रिमंडल सरकार का बचाव करने में लगा है। वे इस घटनाक्रम से थक चुके हैं। मुख्यमंत्री का और कितना बचाव कर सकते हैं? अगर कुछ गलत काम हुआ है तो उसके लिए मुख्यमंत्री के आसपास रहने वाले समर्थकों को ही दोषी ठहराया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने विवादित भूखंड वापस करने का फैसला भी बिना किसी को विश्वास में लिए किया। उसकी जानकारी किसी को नहीं दी गई। यह एक आश्चर्यजनक निर्णय था। डीके शिवकुमार भी इस मामले में टिप्पणी करना बंद कर चुके हैं। इससे भी पार्टी के भीतर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।
कीमती घड़ी पर भी हुआ था विवाद
दरअसल, मुख्यमंत्री की पत्नी ने विवादित सभी 14 भूखंड मुडा को वापस कर दिया है। लेकिन, सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या मुख्यमंत्री को इससे कोई फायदा होगा। क्या वह इस उलझन से बाहर निकल पाएंगे? मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या के पहले कार्यकाल के दौरान भी कुछ ऐसा ही वाकया हुआ था। तब, मुख्यमंत्री के एक दोस्त ने उन्हें 75 लाख की हुब्बोल्ट घड़ी उपहार में दी थी और वह मामला 2016 में सामने आया था। उस कीमती घड़ी को लेकर मुख्यमंत्री विपक्ष के निशाने पर आ गए। लेकिन, उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को घड़ी सौंप दी और उसे राज्य की संपत्ति घोषित कर विवाद से बाहर आ गए।
भूखंड लौटाने में हुई देरी!
इस बार भी उन्होंने मुडा मामले में विवादित जमीन वापस करने की चाल चली है। लेकिन, विशेषज्ञों का मानना है कि इससे उन्हें कितना फायदा होगा अभी कहना जल्दबाजी होगी। क्योंकि, इसमें काफी देर हो चुकी है। अगर राज्यपाल के मामले की जांच की अनुमति देने से पहले वह भूखंड लौटा देते तो शायद मामला इतना आगे नहीं बढ़ता। कानून के जानकारों का यह भी कहना है कि, भूखंडों को वापस करने से चल रही जांच पर कोई असर नहीं पड़ेगा। न्यायालयों में मामला जाने के बाद अधिवक्ताओं की दलील से मालूम होगा कि, यह सिद्धरामय्या को कितना हित पहुंचा सकता है। एक दलील यह जरूर हो सकती है कि, चूंकि, जमीन वापस कर दी गई है इसलिए सरकारी खजाने को कोई नुकसान नहीं हुआ है। लेकिन, उनकी छवि को जरूर नुकसान पहुंचा है। राजनीतिक रूप से मुख्यमंत्री अपने छवि को हुए नुकसान की कितनी भरपाई कर पाएंगे यह कहना मुश्किल है।

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