दु:खों का अंत करने की शक्ति प्रार्थना में-आचार्य महेन्द्रसागर
दु:खों का अंत करने की शक्ति प्रार्थना में-आचार्य महेन्द्रसागर
हासन. आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ हासन में नवान्हिका महोत्सव के तीसरे दिन आचार्य महेन्द्र सागर सूरी ने कहा कि अगर सब कुछ मिलने के बावजूद भी अशांत-बेचैन-परेशान हो तो प्रार्थना को स्वीकार करो। पुण्य नहीं, प्रयास नहीं, प्रकृति नहीं सिर्फ प्रार्थना करो।
आपकी अशांति आदि का दु:ख समाप्त होगा। प्रभु की ओर शरणागति की ये ताकत है। लाखों, करोड़ों-हजारों वर्षों से इस देश में मंदिर की परंपरा चल रही है, क्योंकि ये मंदिर मनुष्यों के लिए हैं, न देवों के लिए हंै न पशु पक्षियों के लिए हैं। मंदिर जो धरती पर हैं वह मनुष्यों के लिए हैं, क्योंकि-अशांत मनुष्य समग्र ब्रह्माण्ड के लिए खतरा है। यदि देव अशांत होगा तो गुस्सा करके कहीं कुछ तोडफ़ोड़ कर देगा, लेकिन मनुष्य अशांत होगा, तो ब्रह्माण्ड में अफरातफरी मचाकर बेचैन कर देगा। इस मानव की बेचैनी दूर करने के लिए। इस मानव की बेचैनी दूर करने का यही सही उपाय है और वह है प्रार्थना। अशांति के कारण मनुष्य अंदर से एक संतप्त रहा करता है। रावण की अशांति ने रामायण का युद्ध खड़ा कर दिया। दुर्योधन की अशांति ने महाभारत का युद्ध खड़ा कर दिया। प्रार्थना में गजब की ताकत है कि प्रार्थना अकेले एक व्यक्ति की होगी परन्तु-परिणाम पूरे ह्रह्माण्ड को प्राप्त होगा। टेलीफोन नंबर सबका अलग अलग होता है। परन्त कोड सबका एक होता है। बस, प्रार्थना एसटीडी कोड है। हम लोग-विधि-विधान के लिए, नियम के लिए या नवकारसी के लिए मंदिर में भगवान के पास स्थानक भवन में सामायिक के लिए जाते हैं और निकल जाते हैं। अब से प्रार्थना के लिए जाइए और प्रार्थना-भी किजिए। तिलक में-केसर पूजा में विश्वास है परन्तु प्रार्थना में विश्वास नहीं है। सांसारिक दु:खों का अंत करने की शक्ति प्रार्थना में है। प्रार्थना का अर्थ प्रक प्रभु के साथ संबंध होना है।
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