बैंगलोर

लोकगीतों में ढला, कविताओं में बरसा सावन

राजस्थान पत्रिका व अभ्युदय की ओर से ‘कुछ कहता है ये सावन कार्यक्रम’

बैंगलोरJul 18, 2023 / 08:05 pm

Santosh kumar Pandey

बेंगलूरु. राजस्थान पत्रिका एवं अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय संस्था के तत्वावधान में बसवेश्वर नगर में आयोजित ‘कुछ कहता है ये सावन’ कार्यक्रम में लोकगीतों की मधुर धुनों ने जहां मन को मोहा वहीं कविताओं में सावन का सौन्दर्य बरसता रहा। राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, यूपी सहित देश के कई हिस्सों में सावन माह के रीति-रिवाजों की चर्चा हुई और सावन विचारों, भावों, सुरों में ढलता रहा। मनभावन कजरी, बारहमासा, घनाक्षरी दोहे, गजलें आदि की फुहारें मन को भिगोती रहीं। इस दौरान दिल्ली की बाढ़ से लेकर, शहरी आपाधापी में कहीं पीछे छूटे रहे झूलों तक का जिक्र हुआ। वक्ताओं ने कहा कि अंधाधुंध शहरीकरण के कारण प्रकृति का कोपभाजन बनना पड़ रहा है।
अजय यादव ने सावन के कहीं खो जाने पर चिंता जताई तो सुशील कुमार ने पिया से पीहर जाने की अनुमति मांगती प्रियतमा के मनोभावों को पेश किया।
सावन भक्ति का भी मौसम

पीयूष कुमार ने युवा पीढ़ी को संदेश देती हुई कविता प्रस्तुत की तो रजनी ने कृष्ण और शिव की स्तुति करते हुए यह बताया कि सावन भक्ति का भी मौसम है। ममता मावंडिया ने बरसे बूंदे आज धरा पर झिर-मिर सावन आया गीत प्रस्तुत किया तो ममता शाह ने मनमोहक कृष्ण भजन से कान्हा को रिझाने की कोशिश की।
सावन के रंगों की इंद्रधनुषी छटा

अमृता शुक्ला ने सावन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला , वहीं ज्योति तिवारी ने अपने गीत में सावन के रंगों की इंद्रधनुषी छटा बिखेर दी। वरिष्ठ कवि आदित्य शुक्ला का मनभावन गीत सावन आखिर आ ही गया को लोगों की भरपूर सराहना मिली। सरिता पांडेय ने पावस की है रात अकेली कैसे काटे की प्रस्तुति दी तो उनके मधुर स्वर से निकली विरह वेदना और उदासी के स्वर फिजा को खामोश कर गए।
गीता चौबे की कजरी ने झूलों की मस्ती का ऐसा दृश्य प्रस्तुत किया कि लोग वाह-वाह करते नजर आए। इसी कड़ी में पल्लवी शर्मा ने परेला झीर-झीर बुनिया गाकर सभी को अवध पहुंचा दिया। पुष्पा त्रिपाठी ने सावन के प्रति अनुपम रचना प्रेषित की और वरिष्ठ कवि प्रेम तन्मय ने उजड़ा उजड़ा चमन घाव हरा करता है, गाकर सावनी माहौल को नई घटाओं से भिगोया।
वरिष्ठ शायर कमल किशोर राजपूत ने बादल बनके आजा मां प्रस्तुत की। संस्था की संस्थापक डॉ इंदु झुनझुनवाला ने बारहमासा एवं कजरी प्रस्तुत की। राजस्थान पत्रिका, बेंगलूरु के सम्पादकीय प्रभारी जीवेन्द्र झा ने भी विचार व्यक्त किए। संचालन संतोष पाण्डेय ने किया। उन्होंने बांसुरी वादन भी प्रस्तुत किया। अंत में डॉ झुनझुनवाला ने धन्यवाद दिया।

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