दरअसल, यह तकनीक बेंगलूरु के ज्योति इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (जेआइटी) के डॉ विश्वनाथ आर., डॉ एम.एस. संतोष के नेतृत्व में विद्यार्थियों की टीम ने विकसित किया है। ये नैनो कोटिंग चिकित्सकीय मास्क को कीटाणु मुक्त बनाएंगे।
डॉ. संतोष ने पत्रिका को बताया कि पिछले तीन महीनों के प्रयास का नतीजा सामने आया है। उन्होंने बताया कि सोलर पैनल पर धूल-कण अथवा पानी की बूंदें जमा हो जाए तो कारगर तरीके से ऊर्जा उत्पादन नहीं होता है। इसके लिए उनके संस्थान द्वारा एक कोटिंग तैयार की गई जिससे सोलर पैनल पर धूलकण या पानी की बंूदें नहीं टिकती हैं। अब उसी तकनीक में सुधार कर एक हाइड्रफोबिक कोटिंग विकसित की गई है जिससे डिस्पोजेबल मास्क तैयार किए जाएंगे।
उन्होंने बताया कि शोधकर्ताओं सोल-जेल तकनीक का उपयोग कर नैनो कणों के सहारे हाइड्रोफोबिक नैनो कोटिंग का निर्माण करेंगे, जिससे मास्क की सतह से प्रभावी रूप से पानी या नमी को हटाना संभव होगा। नैनो कोटिंग सुरक्षित और किफायती होने के साथ ही कोविड-19 के खिलाफ काफी प्रभावी भी है। इससे आम आदमी की व्यापक जरूरतें पूरी की जा सकेंगी और समाज के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण देने में सहायता मिलेगी। उन्होंने बताया कि विभिन्न शोधों के आधार पर यह अनुमान लगाया है कि आने वाले दिनों में एक अरब मास्क की आवश्यकता होगी। अगर उनमें यह कोटिंग हो तो यह काफी प्रभावी साबित होगा।
डीएसटी के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा की सूक्ष्म जीव और पानी रोधी मास्क का उद्देश्य काफी अहम है क्योंकि पर्यावरण में नम संक्रमित तरल की मात्रा ज्यादा है या मास्क को ठीक करने के लिए बार-बार छूना पड़ता है। ऐसी कई प्रकार की कोटिंग तैयार की जा रही हैं, जो अगर सुरक्षित हों, सांस लेने की प्रक्रिया से समझौता न करें और किफायती हों तो ये खासी अहम हो सकती हैं। डॉ संतोष ने बताया कि अगले तीन से चार महीने में यह मास्क बाजार में उपलब्ध हो जाएगा।