कई अभिभावक टीकाकरण चक्र टूटने से चिंतित
नाम नहीं छापने की शर्त पर विश्व स्वास्थ्य संगठन, कर्नाटक के एक प्रतिनिधि ने बताया कि डीपीटी, एचआईबी, पोलियो, न्यूमोकोकल व रोटावायरस वैक्सीन जन्म के प्रथम चार माह के अंदर दे दिए जाने चाहिए। लेकिन हजारों बच्चे इससे वंचित रह गए हैं। लॉकडाउन के बाद टीकाकरण रोक दिया गया था। लेकिन आइएपी के दिशा-निर्देशों पर इसे अब युद्धस्तर पर शुरू करने का काम जारी है।
अब इन कारणों से भी टीकाकारण बाधित
उन्होंने बताया कि 23 अप्रेल से टीकाकरण अभियान शुरू किया गया है। लेकिन कंटेनमेंट जोन में अब भी शुरू नहीं हो सका है। जिन अस्पतालों को कोविड अस्पताल में बदला गया है वहां और फीवर क्लिनिक वाले अस्पतालों में टीकाकरण अभियान शुरू नहीं हो सका है। आंगनवाड़ी केंद्रों के बंद होने से भी टीकाकरण अभियान को धक्का लगा है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताएं आसपास के स्कूलों में टीकाकरण अभियान चलाती थीं। कई अभिभावक टीकाकरण चक्र टूटने से चिंतित हैं। आशा कार्यकर्ताओं पर भी टीकाकरण शुरू करने का दबाव है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अन्य प्रतिनिधि लोकेश ने बताया कि जन्म के 24 घंटे के अंदर दी जाने वाली वैक्सीन जारी है। बीसीजी, हैपेटाइटिस बी, ओरल पोलियो वैक्सीन आदि टीके बाद में नहीं लगाए जा सकते हैं। यह सेवा नहीं रोकी गई है। स्वास्थ्य विभाग पूरे साल बच्चों के टीकाकरण का अभियान चलाता है। इसमें निमोनिया, खांसी, बुखार समेत कई बीमारियों से बचाव के टीके लगाए जाते हैं।
सभी महत्वपूर्ण टीके लगाए जाने चाहिए
कोरोना संकट ने बच्चों के टीकाकरण अभियान पर भी ग्रहण लगा दिया है। जिन बच्चों को टीका लगना था उपमें से कई को नहीं लगा। किसी तक दूसरी या आखिरी डोज नहीं पहुंची। ज्यादातर अभिभावकों की चिंता बढ़ी है कि इस चक्र के टूटने से बच्चे असुरक्षित तो नहीं होंगे। बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से कहीं वे बीमार तो नहीं पड़ जाएंगे। विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि मुख्य टीकों को छोड़ कर अन्य टीकों में कुछ देर होने से कोई विशेष अंतर नहीं पड़ेगा। इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक्स (आइएपी) की सूची में उल्लिखित सभी महत्वपूर्ण टीके लगाए जाने चाहिए।
अधिकारियों को चिंता नहीं
टीकाकरण से प्रदेश में वंचित बच्चों की कुल संख्या व टीकाकरण से छूटे बच्चों को जल्द ही वैक्सीन लगाने आदि योजनाओं को लेकर पत्रिका ने प्रदेश स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की उप निदेशक (टीकाकरण) डॉ. रजनी बीएन से कई बार संपर्क साधने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया।