बताया गया कि पाटिल और राहुल की मुलाकात करीब 45 मिनट चली। इस दौरान पाटिल ने राज्य की राजनीतिक स्थिति और मंत्रिमंडल विस्तार के बाद के हालात से पार्टी अध्यक्ष को अवगत कराया। राहुल ने प्रदेश में मंत्री नहीं बनाए जाने के कारण वरिष्ठ नेताओं में असंतोष पर नाराजगी भी जताई। साथ ही पाटिल से कहा कि वे सरकार को बिना किसी व्यवधान के काम करने दें।
राहुल ने सलाह दी कि वरिष्ठ नेताओं को अगले लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी को मजबूत बनाने की कोशिश में जुट जाना चाहिए। इससे पहले पाटिल ने दिल्ली में पार्टी महासचिव अहमद पटेल से मुलाकात की और उनके साथ ही राहुल से मिलने उनके आवास पर पहुंचे। बाद में प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष दिनेश गुंडूराव और ग्रामीण विकास एवं संसदीय कार्य मंत्री कृष्णा बैरेगौड़ा भी बैठक में शामिल हुए।
बैठक के बाद पाटिल ने दिल्ली में संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि ‘मैंने पार्टी अध्यक्ष को राज्य के हालात, पार्टी की स्थिति और नेताओं में नाराजगी को लेकर जानकारी दी। पार्टी अध्यक्ष ने मेरी बातें गंभीरता से सुनीं और दूसरे नेताओं से भी चर्चा की। मैंने पार्टी आलाकमान के सामने कोई मांग नहीं रखी है। मैं न तो उपमुख्यमंत्री और न ही मंत्री अथवा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद का दावेदार हूं। राहुल के साथ इन मसलों पर कोई चर्चा नहीं हुई।Ó
अगले कदम के बारे में पूछे जाने पर पाटिल ने कहा कि वे अकेले नहीं हैं। सतीश जारकीहोली सहित पार्टी में कई मित्र हैं। हम लोगों में कोई वरिष्ठ या कनिष्ठ नहीं है। पार्टी अध्यक्ष के साथ बैठक के बाद वे बाकी नेताओं के अलावा इस मामले में साथ रहे 15-20 विधायकों से चर्चा कर भविष्य की रणनीति के बारे में निर्णय लेंगे। पाटिल ने साफ तौर पर पार्टी छोडऩे के कयासों को खारिज करते हुए कहा कि वे कांगे्रस के साथ ही रहेंगे।
पाटिल ने राजनीतिक गलियारों में चल रहे उन कयासों को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि उन्हें लोकसभा में पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खरगे के विरोध के कारण मंत्री नहीं बनाया गया। खरगे वरिष्ठ नेता हैं। वे उनका सम्मान करते हैं। इसके लिए वे उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। पाटिल ने इस बात से भी इनकार किया कि अलग लिंगायत धर्म को लेकर काफी आक्रामक रुख के कारण उन्हें इस बार मंत्री नहीं बनाया गया क्योंकि लिंगायत मुद्दे का दांव कांग्रेस को चुनाव में उल्टा पड़ गया।
पाटिल ने राजनीतिक गलियारों में चल रहे उन कयासों को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि उन्हें लोकसभा में पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खरगे के विरोध के कारण मंत्री नहीं बनाया गया। खरगे वरिष्ठ नेता हैं। वे उनका सम्मान करते हैं। इसके लिए वे उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। पाटिल ने इस बात से भी इनकार किया कि अलग लिंगायत धर्म को लेकर काफी आक्रामक रुख के कारण उन्हें इस बार मंत्री नहीं बनाया गया क्योंकि लिंगायत मुद्दे का दांव कांग्रेस को चुनाव में उल्टा पड़ गया।
गौरतलब है कि पिछली सिद्धरामय्या सरकार में पाटिल पूरे पांच साल मंत्री रहे थे और अलग लिंगायत धर्म के मसले पर भी काफी आक्रामक रहे थे। इस बार मंत्री नहीं बनाए जाने को लेकर वे नाराज हैं और लगातर पार्टी पर दबाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। मंत्रिमंडल विस्तार के बाद से ही पाटिल के घर पर असंतुष्ट नेताओं की बैठकों का दौर जारी है। शुक्रवार को पाटिल को मनाने के लिए मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी भी उनसे आवास पर गए थे। कांग्रेस आलाकमान ने आधा दर्जन नेताओं को पाटिल को समझाने के लिए भेजा था, लेकिन पाटिल खुद को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग पर अड़े रहे। इसके बाद पार्टी आलाकमान ने हालात संभालने के लिए पाटिल और दिनेश सहित कई नेताओं को दिल्ली तलब किया था।
पार्टी का आंतरिक मामला
पाटिल के विपरीत दिनेश गुंडूराव व कृष्णा बैरेगौड़ा ने मीडिया से बात नहीं की। दोनों नेताओं ने कहा कि राहुल से जिन मसलों पर उन लोगों ने बात की वह पार्टी का आंतरिक मामला है। गौड़ा ने कहा कि हम मतभेद दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। अभी बातचीत चल रही है। अब तक कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है।
पाटिल के विपरीत दिनेश गुंडूराव व कृष्णा बैरेगौड़ा ने मीडिया से बात नहीं की। दोनों नेताओं ने कहा कि राहुल से जिन मसलों पर उन लोगों ने बात की वह पार्टी का आंतरिक मामला है। गौड़ा ने कहा कि हम मतभेद दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। अभी बातचीत चल रही है। अब तक कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है।