उन्होंने एक बयान में कहा कि यह फैसला राज्यों के अधिकारों पर अंकुश लगाने की एक भयावह साजिश है। ऐसे समय में जब मौजूदा चुनावी व्यवस्था में सुधारों की सख्त जरूरत है, ऐसे विधेयक से लोकतंत्र की नींव और कमजोर होगी। ऐसे महत्वपूर्ण विधेयक को मंजूरी देने से पहले मोदी सरकार को विपक्षी दलों और राज्य सरकारों से सलाह लेनी चाहिए थी। हालांकि, अपनी सत्तावादी प्रवृत्ति के अनुरूप, भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार इस अलोकतांत्रिक प्रस्ताव को देश पर थोपने की कोशिश कर रही है।
सिद्धरामय्या ने कहा कि केरल सरकार पहले ही ओएनओई प्रस्ताव का विरोध करते हुए एक प्रस्ताव पारित कर चुकी है और केंद्र को अपनी असहमति से अवगत करा चुकी है। अगर जरूरत पड़ी तो हमारी सरकार कांग्रेस हाईकमान से भी सलाह-मशविरा करेगी और इस लोकतंत्र विरोधी कदम के खिलाफ कड़ा संदेश देने के लिए इसी तरह का प्रस्ताव पारित करेगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह प्रस्ताव उन संकटों का कोई समाधान नहीं देता जो तब पैदा होते हैं जब सत्तारूढ़ पार्टी लोकसभा या राज्य विधानसभाओं में अपना बहुमत खो देती है। ऐसी स्थितियों में, एकमात्र लोकतांत्रिक उपाय नए चुनाव कराना ही है। विश्वास खोने के बावजूद अल्पमत सरकार को सत्ता में बने रहने देना लोकतंत्र के साथ विश्वासघात से कम नहीं होगा। ऐसी दोषपूर्ण चुनावी प्रणाली के क्रियान्वयन के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और संविधान के कम से कम पांच प्रमुख प्रावधानों में संशोधन की आवश्यकता होगी।