बैंगलोर

हादसे में बेटे की मौत पर मां को मिला 93 लाख रुपए मुआवजा, सुप्रीम कोर्ट ने दिया फैसला

अदालत ने महसूस किया कि मृतक सूर्यकांत की सकल आय की गणना के लिए उसके सकल वेतन से आयकर की कटौती करना उच्च न्यायालय का उचित निर्णय था। यह एक ऐसा कारक था, जिसे दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने मुआवजा निर्धारित करते समय अनदेखा कर दिया था।

बैंगलोरAug 11, 2024 / 12:04 am

Sanjay Kumar Kareer

अदालत ने यह भी कहा: दुर्घटना मुआवजा निर्धारित करने में भत्ते, सुविधाओं की गणना वेतन में की जाएगी

बेंगलूरु. सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला को 93 लाख रुपए से अधिक मुआवजा देने का आदेश दिया है। साल 2013 में महिला के 26 वर्षीय बेटे की एक सडक़ दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। कोर्ट ने कहा कि मोटर दुर्घटना के मामलों में मुआवजा निर्धारित करने में भविष्य की संभावनाओं के आधार पर वृद्धि लागू करने से पहले भत्ते और सुविधाओं को मृतक के मूल वेतन में जोड़ा जाना चाहिए।
जस्टिस हिमा कोहली और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भविष्य की संभावनाओं के आधार पर आय में वृद्धि के सिद्धांत को लागू करते हुए मृतक के मूल वेतन में मकान किराया भत्ता और भविष्य निधि में कंपनी के योगदान को जोडऩे में चूक करके गलती की है। महिला का बेटा सूर्यकांत एक निजी कंपनी में सेवा सलाहकार के पद पर काम करता था।
न्यायालय ने मीनाक्षी द्वारा उच्च न्यायालय के 2 अगस्त, 2017 के फैसले के खिलाफ दायर अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया, जिसमें मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा उसे दिए जाने वाले मुआवजे की राशि 1 करोड़ 4 लाख 1 हजार रुपये से घटाकर 49 लाख 57 हजार 35 रुपए कर दी गई थी।
उच्च न्यायालय के फैसले को गलत मानते हुए पीठ ने कहा कि इस पहलू पर कोई दो राय नहीं हो सकती कि वेतनभोगी कर्मचारी को मिलने वाले ये भत्ते स्थिर नहीं रहते हैं और आम तौर पर कर्मचारी की सेवा अवधि के अनुपात में बढ़ते रहते हैं। पीठ ने कहा कि ये भत्ते आम तौर पर मूल वेतन के संदर्भ में आनुपातिक आधार पर तय किए जाते हैं। न्यायालय ने कहा कि सरकारी अधिकारियों की सेवा शर्तों और वेतनमानों के अनुसार, मकान किराया भत्ता मूल वेतन के 8 प्रतिशत से 30 प्रतिशत के बीच देय है।
पीठ ने कहा, इसलिए, मकान किराया भत्ता मूल वेतन के अनुपात में एक निश्चित अनुपात में दिया जाता है। मूल वेतन में वृद्धि के साथ, मकान किराया भत्ते की मात्रा भी आनुपातिक रूप से बढ़ जाती है। निजी सेवा में कार्यरत व्यक्ति को स्वीकार्य लाभ योजना और कंपनी का अंशदान भी स्थिर नहीं रहेगा और सेवा की अवधि के साथ बढऩा तय है।
हालांकि, अदालत ने महसूस किया कि मृतक सूर्यकांत की सकल आय की गणना के लिए उसके सकल वेतन से आयकर की कटौती करना उच्च न्यायालय का उचित निर्णय था। यह एक ऐसा कारक था, जिसे दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने मुआवजा निर्धारित करते समय अनदेखा कर दिया था।

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