जब भी ये दिल उदास होता है…
सभागार में रफी का एक और नगमा गूंज रहा है, ‘जब भी ये दिल उदास होता है जाने कौन आसपास होता है’। उदासी ही क्यों, रफी की आवाज का रिश्ता हर उस संवेदना से था जो आदमी होने की शर्त है, जो जिंदा रखती है और जिंदादिल भी। उनकी आवाज में गजब की कशिश और अद्भुत सम्प्रेषणीयता थी। यही कारण है कि वह तन्हाई में किसी साथी की तरह आसपास होती है, खुशी के पलों में साथ गाती है, रोमांस के नर्म-ओ-नाजुक एहसास को और भी मदिर और मधुर बना देती है तो पीड़ा के क्षण में वैसे ही राहत देती है जैसे जख्मों पर कोई मरहम लगा रहा हो।
![MOHMMED RAFI](http://cms.patrika.com/wp-content/uploads/2019/07/31/ahamad_with_mohammad_rafi_1_4911657-m.jpg)
शाल में ढका चेहरा और इडली सांबर का स्वाद
मोहम्मद रफी के करीबी अहमद बताते हैं कि रफी को इडली-वडा और संाबर बेहद पसंद था। एक बार बोले चलो होटल में जाकर इडली-सांबर खाकर आएंगे। अहमद ने कहा आप पहचान लिए जाएंगे और भीड़ को संभालना मुश्किल हो जाएगा। यहीं मंगा लेते हैं। रफी ने कहा, असली स्वाद तो वहीं जाकर खाने में आएगा। और, फिर वे शाल से चेहरा ढककर गए और इडली संाबर का स्वाद लेकर वाह-वाह करते हुए लौटे थे।