scriptतुम मुझे यूं भुला न पाओगे… | Mohmmad Rafi's Death Anniversary | Patrika News
बैंगलोर

तुम मुझे यूं भुला न पाओगे…

मोहम्मद रफी की पुण्य तिथि पर विशेष
तेरे बिन सूने नैन हमारे
39 साल पहले गायकों की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी को जब दिल का दौरा पड़ा तो निधन केवल उनका हुआ, देह सिर्फ उनकी शिथिल पड़ी; लेकिन न जाने कितने दिल टूटे, कितने लोग अकेले रह गए, कितनी शामें उदास हो गईं और कितने साज उस आवाज की राह तकते रह गए, जैसे कह रहे हों ‘तेरे बिन सूने नैन हमारे’। हां, आखों से रोशनी का जो रिश्ता है कुछ वैसा ही रिश्ता फिल्मी गीतों और मोहम्मद रफी की आवाज का रहा। आज इस यशस्वी पाŸव गायक की पुण्य तिथि है। बेंगलूरु से जुड़ी उनकी स्मृतियां आज भी लोगों के जेहन में हैं।

बैंगलोरJul 31, 2019 / 12:31 am

Rajendra Vyas

MOHMMED RAFI

तुम मुझे यूं भुला न पाओगे…

संतोष पाण्डेय
बेंगलूरु. बेंगलूरु का एक सभागार। मोहम्मद रफी जैसी आवाज में रफी साहब का गाया हुआ गीत ‘तुम मुझे यूं भुला न पाओगे’ गाने की कोशिश करता एक कलाकार। गाने की समाप्ति पर तालियों के साथ ही दूसरे गाने की फरमाइश और गाना शुरू हो जाता है ‘वो जब याद आए बहुत याद आए’।
सचमुच मोहम्मद रफी जब याद आते हैं तो बहुत याद आते हैं। गायकी की शायद ही कोई विधा हो जो मोहम्मद रफी की आवाज का स्पर्श पाकर मुस्कुरा न उठी हो। नात हो , भजन हो, उदासी भरी गजल हो या तार सप्तक में गाई उल्लास भरी कव्वाली, विभिन्न रागों पर आधारित रोमांटिक गीत हों या शरारती चुलबुले नगमें… रफी की आवाज हर जगह मौजूं थी, हर विधा में फिट बैठती थी। देश की शायद ही कोई भाषा हो जिसमें रफी के तराने न गूंजे हों।

जब भी ये दिल उदास होता है…
सभागार में रफी का एक और नगमा गूंज रहा है, ‘जब भी ये दिल उदास होता है जाने कौन आसपास होता है’। उदासी ही क्यों, रफी की आवाज का रिश्ता हर उस संवेदना से था जो आदमी होने की शर्त है, जो जिंदा रखती है और जिंदादिल भी। उनकी आवाज में गजब की कशिश और अद्भुत सम्प्रेषणीयता थी। यही कारण है कि वह तन्हाई में किसी साथी की तरह आसपास होती है, खुशी के पलों में साथ गाती है, रोमांस के नर्म-ओ-नाजुक एहसास को और भी मदिर और मधुर बना देती है तो पीड़ा के क्षण में वैसे ही राहत देती है जैसे जख्मों पर कोई मरहम लगा रहा हो।

MOHMMED RAFI

शाल में ढका चेहरा और इडली सांबर का स्वाद
मोहम्मद रफी के करीबी अहमद बताते हैं कि रफी को इडली-वडा और संाबर बेहद पसंद था। एक बार बोले चलो होटल में जाकर इडली-सांबर खाकर आएंगे। अहमद ने कहा आप पहचान लिए जाएंगे और भीड़ को संभालना मुश्किल हो जाएगा। यहीं मंगा लेते हैं। रफी ने कहा, असली स्वाद तो वहीं जाकर खाने में आएगा। और, फिर वे शाल से चेहरा ढककर गए और इडली संाबर का स्वाद लेकर वाह-वाह करते हुए लौटे थे।

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