बेंगलूरु. दो महीने बाद होने वाले चुनाव से पहले मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा की मुश्किलें बढ़ाने की रणनीति के तहत राज्य की कांग्रेस सरकार लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के मामले की गेंद अब केंद्र सरकार के पाले में डालने की तैयारी कर चुकी है। बुधवार शाम मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या के नेतृत्व में होने वाली राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में इस मसले पर विशेषज्ञ समिति और राज्य अल्पसंख्यक आयोग की सिफारिश स्वीकार किए जाने की संभावना है। लिंगायत समुदाय को राजनीतिक तौर पर भाजपा का समर्थक माना जाता है और साल भर से कांग्रेस और सिद्धरामय्या लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने की बात को हवा देते रहे हैं। हालांकि, संविधान या कानून के मुताबिक अलग धर्म का दर्जा देना असंभव होने के बाद कांग्रेस सरकार ने अल्पसंख्यक दर्जा देने का दांव खेला था। भाजपा पहले ही सत्ता में आने पर इस प्रस्ताव को खत्म करने की बात कह चुकी है।
कई संगठनों से मिले ज्ञापनों के आधार पर राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश नागमोहन दास की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित की थी। पिछले सप्ताह दी गई रिपोर्ट में समिति ने लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की सिफारिश की थी जबकि खुद को हिंदू मानने वाले लिंगायत समुदाय के उपसमूह वीरशैव को इससे अलग रखने की सिफारिश की थी। समिति ने कहा था कि लिंगायत और वीरशैव समुदाय की पूजा पद्धति अलग-अलग है। लिंगायत न तो मूर्ति पूजा नहीं करते हैं और ना ही हिंदू धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। लिंगायत संत बसवेश्वर के अनुयायी हैं जबकि वीरशैव
शिव की मूर्ति की करते हैं और हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। समिति की रिपोर्ट के आधार पर आयोग ने भी सरकार से लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की सिफारिश की है। पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री ने कहा था कि समिति की रिपोर्ट के बारे में मंत्रिमंडल में चर्चा के बाद फैसला होगा। मुख्यमंत्री पहले ही सिफारिश के आधार पर मामला केंद्र को भेजने का संकेत दे चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक आयोग व समिति ने वीरशैव और पंचशाली उप समूह को अल्पसंख्यक दर्जे से बाहर रखने की सिफारिश की है।
राजनीतिक नुकसान से बचने की कोशिशकांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि राज्य सरकार को किसी समुदाय या समूह को अल्पसंख्यक का दर्जा देने का अधिकार है लेकिन इस मसले पर किसी राजनीतिक नुकसान से बचने की रणनीति के तहत सरकार गेंद केंद्र सरकार के पाले में डालेगी। राज्य सरकार समिति की रिपोर्ट और आयोग की सिफारिश के साथ केंद्र को निर्णय लेने के लिए प्रस्ताव भेजेगी। पार्टी नेताओं का मानना है कि विधानसभा चुनाव से दो महीने पहले इस संवेदनशील मसले पर सीधे फैसला लेने के बजाय केंद्र के पास भेजना राजनीतिक तौर पर अपेक्षाकृत ज्यादा फायदेमंद रहेगा। राज्य सरकार के फैसला करने पर विवाद हो सकता है और उससे चुनाव में नुकसान की आशंका रहेगी। अगर भाजपा नीत केंद्र सरकार फैसला लेने में देरी करती है तो कांग्रेस को उसे कटघरे में खड़ा करने का अवसर मिलेगा और अगर मोदी सरकार राज्य की सिफारिश को मान लेती तो भी कांग्रेस उसे भुना पाएगी।
राजनीतिक असर को लेकर चिंतितकांग्रेस नेताओं के एक तबके का मानना है कि लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से इसमें पहले से शामिल समुदायों के लिए अवसर घटेगा और पार्टी को नुकसान होगा। एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि यह काफी जटिल मसला है। हमें नहीं पता कि अल्पसंख्यक दर्जा मिलने पर लिंगायत का कितना समर्थन हमें मिलेगा। यह समुदाय लंबे समय से भाजपा का समर्थक रहा है और आगे भी बना रह सकता है। उक्त मंत्री ने कहा कि हमें इस बात की आशंका भी है कि हिस्सा घटने से अल्पसंख्यक समुदाय में नाराजगी बढ़ सकती है और बिना कुछ पाए हम उनका समर्थन भी खो सकते हैं। एक अन्य मंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री के आश्वासन को देखते हुए अब हम इससे किनारा भी नहीं कर सकते हैं लिहाजा हमें लगता है कि केंद्र के पास भेजकर फैसला उस पर छोडऩा सही रहेगा। एक अन्य मंत्री ने कहा कि यह मसला हमें चुनाव में उलटा भी पड़ सकता है।
कांग्रेस में भी मतभेदइस मसले पर सत्तारुढ़ कांग्रेस ही नहीं, राज्य मंत्रिमंडल के सदस्यों के बीच भी मतभेद है। लिंगायत समुदाय के पार्टी नेताओं का एक तबका इसका समर्थन कर रहा है तो दूसरा विरोध। पूर्व मंत्री शामनूर शिवशंकरप्पा अलग धर्म के दर्जे का विरोध कर रहे हैं। अखिल भारतीय वीरशैव महासभा के प्रमुख शामनूर प्रदेश कांग्रेस के लंबे समय तक कोषाध्यक्ष भी रहे हैं। शामनूर का कहना है कि लिंगायत और वीरशैव एक ही हैं और अगर अलग धर्म का दर्जा दिया जाता है तो सभी उप समूहों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए। लिंगायत समुदाय के प्रमुख नेताओं में शामिल प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बी एस येड्डियूरप्पा भी शामनूर के रूख का समर्थन कर चुके हैं। भाजपा पहले ही कांग्रेस पर समाज को बांटने और अपने जनाधार पर वार करने के लिए कांग्रेस पर ऐसे कदम उठाने का आरोप लगा चुकी है। भाजपा के अध्यक्ष राष्ट्रीय
अमित शाह ने पिछले महीने के दौरे में कहा था कि अगर पार्टी की सरकार बनी तो अगल धर्म के दर्जे के प्रस्ताव को खत्म कर दिया जाएगा। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि कांग्रेस सरकार कोई भी फैसला करे, इस मसले पर उसे फायदा नहीं होगा।
Hindi News / Bangalore / लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक दर्जा का मामला : केंद्र के पाले में गेंद डालेगी सिद्धू सरकार!