चामराजपेट में शीतल-बुद्धि-वीर वाटिका के विशाल मंडप में अधिक श्रावण माह के शुभारंभ के अवसर पर उन्होंने ओम और ह्रीं, दोनों बीजमंत्रों की तलस्पर्शी विवेचना की। उन्होंने बताया कि जैन परंपरा इन बीजमंत्रों में पंच परमेष्ठी और चौबीस तीर्थंकरों का अधिष्ठान मानती है। वैदिक परंपरा इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर की प्रतिष्ठा मानती है।
आचार्य ने कहा कि ये दोनों बीजाक्षर किसी भी मंत्र के साथ जुडक़र, उसे शक्तिशाली बना देते हैं। भारतीय परंपरा में इन दोनों बीजमंत्रों पर विपुल साहित्य लिखा गया है। ये शक्ति, भक्ति और साधना के पुंज हैं। इनका भावपूर्ण लेखन, पूजन, मंत्रजप और ध्यान, अपने मन को परमात्म तत्व से जोड़ता है। जीवन की शांति और उन्नति का भी ये श्रेष्ठ मार्ग हैं। ये अनुभवसिद्ध आर्षवचन हैं। सभी साधकों और योगियों ने इन बीजमंत्रों से सिद्धियों को प्राप्त कर संसार को अपार रोशनी दी।
जैनाचार्य ने स्वर, व्यंजन, रंग और अधिष्ठान के तत्वों के साथ ह्रींकार ध्यान का २४०० से अधिक साधकों को सरल प्रयोग सिखलाया। गणि पद्मविमलसागर के निर्देशन में सभी श्रमणों ने सामूहिक मंगलपाठ प्रस्तुत किया।