तपेदिक (टीबी) मरीजों के बीच एचआइवी सकारात्मकता का प्रसार चिंता का विषय बना हुआ है। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) के आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के बाद Karnataka इस मामले में देश में तीसरे स्थान पर है। कर्नाटक राज्य एड्स रोकथाम सोसाइटी के अनुसार राज्य में वर्ष 2022 में निदान किए गए 80,558 टीबी मरीजों में से 94 फीसदी HIV संक्रमित थे। कर्नाटक में टीबी के कारण करीब 6.6 फीसदी मरीज दम तोड़ देते हैं। टीबी-एचआइवी सह-संक्रमण का उच्च प्रसार उच्च मृत्यु दर के कारणों में से एक है।
3,979 मरीज राज्य से
देश में वर्ष 2022 में TB/HIV सह-संक्रमण वाले 37,578 मरीजों की पहचान हुई। इनमें 3,979 मरीज कर्नाटक से थे। राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीइपी) और एनएसीपी फील्ड कर्मचारी इन मामलों के प्रबंधन की संयुक्त रूप से निगरानी कर रहे हैं। टीबी-एचआइवी सह-सक्रमित मामलों के लिए टीबी उपचार की सफलता दर 75 फीसदी है।
कैदियों पर विशेष ध्यान
सभी जेलों और किशोर गृहों सहित अन्य कैदियों की भी TB जांच की गई। संक्रमितों को उपचार प्रणाली से जोड़ा गया। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) और एनटीइपी कार्यक्रम जिला-स्तरीय फील्ड कर्मचारी रिहाई के बाद भी कैदियों का उपचार सुनिश्चित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखते हैं। राज्य के 52 जेलों को एनएसीपी के तहत कवर किया गया था और 36,601 कैदियों में से 33,102 की जांच की गई थी। इनमें से 369 को परीक्षण के लिए भेजा गया और 283 का टीबी के लिए परीक्षण किया गया। 12 कैदियों में टीबी की पुष्टि हुई।
दवा प्रतिरोधी टीबी ने बढ़ाई समस्या
चिकित्सकों व एचआइवी या एड्स (HIV/AIDS) नियंत्रण कार्यकर्ताओं के अनुसार विशेष कर कोविड महामारी के बाद राज्य में एचआइवी संक्रमण के मामलों में कमी आई है। हालांकि, टीबी-एचआइवी सह-संक्रमण के मरीजों में बढ़ता दवा प्रतिरोधी टीबी अब भी चिंता का विषय है। एक वरिष्ठ चिकित्सक के अनुसार मौजूदा दवा नियमों का कार्यान्वयन बहुत कुशल नहीं है। यह दवा प्रतिरोध का मूल कारण है। इस क्षेत्र में और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। बड़े पैमाने पर समुदाय के लिए इसका पालन सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है ताकि एचआइवी-टीबी सह-संक्रमण को नियंत्रित किया जा सके।
प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है एचआइवी
एचआइवी संक्रमित लोगों में अन्य लोगों की तुलना में टीबी होने की संभावना बढ़ जाती है। एचआइवी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है। शरीर के लिए टीबी के कीटाणुओं से लडऩा कठिन हो जाता है। एचआइवी है तो टीबी की जांच कराना बहुत जरूरी हो जाता है।