एस्टर सीएमआइ के यकृत प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. सोनल अस्थाना ने मंगलवार को बताया कि 37 वर्षीय यह नाइजीरियाई मरीज यहोवा विटनेसेस (Jehovah witness) या समुदाय का है। जो धार्मिक मान्यताओं के कारण ब्लड ट्रांसफ्यूजन (खून चढ़वाने) में विश्वास नहीं रखते हैं। चिकित्सकों के लिए यह प्रत्यारोपण चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि यकृत प्रत्यारोपण में रक्त ज्यादा बहता है। मरीज को तीन से चार यूनिट रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है, लेकिन इस मामले में मरीज और परिजनों ने ब्लड ट्रांसफ्यूजन से साफ मना कर रखा था। मरीज के भाई ने यकृत का हिस्सा दान किया।
यकृत प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. राजीव लोचन ने कहा कि सर्जरी शुरू करने से पहले मरीज के शरीर से दो यूनिट रक्त निकाला गया। विशेष मशीन के जरिए पूरी सर्जरी के दौरान रक्त का प्रवाह बना रहा। सर्जरी के दौरान दो यूनिट रक्तस्राव हुआ। लेकिन सेल सैवेज तकनीक से इसी रक्त का पुन: इस्तेमाल किया गया। यह ऐसी तकनीक है जो सर्जरी के दौरान सर्जन को खोए हुए रक्त को collect करने में सक्षम बनाता है।