बैंगलोर

जैन दीक्षा वैचारिक क्रांति का मार्ग: विमलसागर सूरी

इस अवसर पर आचार्य विमलसागरसूरी ने कहा कि जैन दीक्षा वैचारिक क्रांति का मार्ग है। हर कोई इसे ग्रहण नहीं कर सकता और हर किसी को यह दी नहीं जा सकती। जैन दीक्षा के लिए मनुष्य को कंचन-कामिनी का परित्याग करने के साथ-साथ सारे सांसारिक मोह-ममत्व को भी छोड़कर मानसिक-वैचारिक रूप से क्रान्त होना पड़ता है। बाकी सारे त्याग तो छोटे-बड़े त्याग हैं, पर जैन साधु बनना महान त्याग है।

बैंगलोरJan 18, 2020 / 08:56 pm

Santosh kumar Pandey

जैन दीक्षा वैचारिक क्रांति का मार्ग: विमलसागर सूरी

मैसूरु. सुमतिनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ के तत्वावधान व आचार्य वर्धमानसागरसूरी एवं आचार्य विमलसागरसूरी के सान्निध्य में शनिवार को यहां चार बाल मुनि भ्राताओं की बड़ी दीक्षा का कार्यक्रम हुआ। सुमतिनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में बेंगलूरु, चेन्नई, मंडिया, चलकेरे, हिरियूर, मुंबई, सूरत, अहमदाबाद आदि अनेक गांव-नगरों से श्रद्धालु मैसूरु पहुंचे। कर्नाटक के चलकेरे और कोप्पल में जन्मे चार बाल मुमुक्षुओं ने पिछले महीने 14 दिसंबर को बेंगलूरु के फ्रीडम पार्क में जैन दीक्षा अंगीकार की थी।
निर्धारित साधना संपन्न कर शनिवार को उन्होंने यहां आयोजित समारोह में पंच महाव्रत ग्रहण कर साध्वाचार की शुद्ध परिपालना का संकल्प लिया। आचार्य वर्धमानसागरसूरी और आचार्य विमलसागरसूरी ने उन्हें संकल्प प्रदान किया। उपस्थित श्रद्धालुओं ने अक्षत से नूतन मुनियों को बधाया। सुबह 8:30 बजे नजरबाद स्थित रॉयल सिटी से शोभायात्रा शुरू हुई। पुरुष वर्ग श्वेत और महिला वर्ग लाल परिधान में दीक्षा के इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए।
बन्नूर रोड स्थित आदिश्वर वाटिका के पास बनाए गए सुमति-बुद्धि प्रवचन वाटिका के पंडाल में आयोजित कार्यक्रम में दरला परिवार ने सुमतिनाथ जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ की ओर से सभी संतों का शॉल ओढ़ाकर बहुमान किया। मुंबई से विशेष रूप से आए राकेश शाह एण्ड पार्टी ने भक्ति संगीत की सुंदर प्रस्तुतियां दीं। मैसूर में यह पहला अवसर था जब जैन समाज के श्वेतांबर, दिगंबर, स्थानकवासी और तेरापंथी चारों समाज के श्रद्धालु बड़ी संख्या में दीक्षा कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। पहले 16 वर्षीय दीक्षित का नाम मुनि तत्वविमलसागर, दूसरे 16 वर्षीय दीक्षित का नाम मुनि वीरविमलसागर, तीसरे 15 वर्षीय दीक्षित का नाम मुनि पुण्यविमलसागर एवं चौथे 11 वर्षीय दीक्षित का नाम मुनि तीर्थविमलसागर रखा गया।
इस अवसर पर आचार्य विमलसागरसूरी ने कहा कि जैन दीक्षा वैचारिक क्रांति का मार्ग है। हर कोई इसे ग्रहण नहीं कर सकता और हर किसी को यह दी नहीं जा सकती। जैन दीक्षा के लिए मनुष्य को कंचन-कामिनी का परित्याग करने के साथ-साथ सारे सांसारिक मोह-ममत्व को भी छोड़कर मानसिक-वैचारिक रूप से क्रान्त होना पड़ता है। बाकी सारे त्याग तो छोटे-बड़े त्याग हैं, पर जैन साधु बनना महान त्याग है। यहां वेश बदलने के साथ-साथ विचार भी बदल जाते हैं और आचरण भी बदल जाता है। 21वीं शताब्दी में नाना प्रकार की चीज-वस्तुओं की अपेक्षाओं के बीच जैन साधु जीवन जीना संसार का सबसे बड़े आश्चर्य है।
सुमतिनाथ जैन संघ के अध्यक्ष अशोक दांतेवाडिय़ा ने बताया कि मैसूर जैन संघ का यह ऐतिहासिक कार्यक्रम था। संघ के ट्रस्टी हंसराज पगारिया ने बताया इतना अनुशासन और श्रद्धालुओं की इतनी भीड़ इसके पहले यहां कभी नहीं देखी गई।

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