इसरो ने कहा है कि, इस भू-चुंबकीय तूफान में बड़े पैमाने पर एक्स-क्लास की सौर ज्वालाएं भडक़ीं जो पृथ्वी तक पहुंची। इसके आलवा एम और सी-क्लास की भी ज्वालाएं थीं। इन सौर ज्वालाओं ने संचार और जीपीएस प्रणाली को बाधित कर दिया। तीव्रता के मामले यह सौर तूफान 2003 के बाद सबसे शक्तिशाली था। इससे सूर्य पर चमकने वाला जो क्षेत्र बना वह 1859 में हुई ऐतिहासिक कैरिंगटन घटना जितना बड़ा था। बड़े पैमाने पर एक्स ज्वालाएं और कॅरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) पृथ्वी टकराईं। इस घटना का भारत में 11 मई की सुबह प्रभाव पड़ा। उस समय भारतीय क्षेत्र पर आयनमंडल पूर्ण रूप से विकसित नहीं था। हालांकि, भारतीय क्षेत्र पर इसका प्रभाव अपेक्षाकृत कम पड़ा। प्रशांत और अमरीकी क्षेत्र में आयनमंडल तब काफी अशांत था।
बढ़ गया था वातावरण में इलेक्ट्रॉन का घनत्व
राष्ट्रीय वायुमंडलीय अनुसंधान प्रयोगशाला गडंकी में जीएनएसएस नेटवर्क ने पाया कि, 10 मई की आधी रात से 11 मई की सुबह तक कुल इलेक्ट्रॉन की मात्रा में 50 फीसदी की गिरावट थी। लेकिन, 11 मई की सुबह उसमें 10 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई। इससे आयनमंडल के अशांत होने का संकेत मिला। शाम तक कुल इलेक्ट्रॅन की मात्रा में 30 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। वहीं, थुम्बा में इलेक्ट्रॉन की मात्रा में 9 और 10 मई की तुलना में 100 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई। त्रिवेंद्रम में सुबह 9 बजे इलेक्ट्रॉन की मात्रा 80 टीईयूसी थी। एक टीईयूसी का अर्थ है प्रति वर्ग मीटर में 1016 इलेक्ट्रॉन।
आदित्य ने पकड़ा प्रोटोन और अल्फा किरणों को
देश की पहली सौर अंतरिक्ष वेधशाला आदित्य एल-1 के उपकरणों ने सूर्य की तीव्र लपटों के साथ प्रवाहित वाली सौर हवाओं का अवलोकन किया। आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट(एसपेक्स) ने सौर तूफान के प्रचंड वेग को दर्शाया। यह उपकरण अब भी दिखा रहा है कि, सौर तूफान तीव्र है और उससे प्रचंड लपटें निकल रही हैं। आदित्य के पे-लोड सोलर विंड आयन स्पेक्ट्रोमीटर (स्विस) ने प्रोटोन और अल्फा कणों के प्रवाह को पकड़ा जो सौर विस्फोट की घटनाओं में बढ़ जाती हैं। जहां आदित्य एल-1 ने इस घटना को लग्रांज-1 से पकड़ा वहीं, चंद्रयान-2 के आर्बिटन ने चांद की कक्षा में चक्कर लगाते हुए सौर विस्फोट की घटना को महसूस किया। चंद्रयान-2 के पे-लोड एक्सएसएम ने इस भू-चुंबकीय तूफान की कई दिलचस्प घटनाएं देखी। इनमें बड़े पैमाने पर सौर ज्वालएं भी शामिल हैं जो एक स्पाइक्स के रूप में प्रकट हुईं। यह उपकरण मुख्य रूप से एक्स-रे किरणों की निगरानी करता है।
दो उपग्रहों के स्विच ऑफ किए गए स्टार सेंसर
इसरो का हासन स्थित मास्टर कंट्रोल केंद्र (एमसीएफ) इस घटनाओं को लेकर पहले से ही सतर्क था। ऐसी घटनाओं का अंतरिक्षयानों पर व्यापक असर पड़ता है जिससे संचार और अन्य सेवाएं बाधित होती हैं। इसरो केंद्र ने पाया कि, कुछ अंतरिक्षयानों में थोड़ा विचलन आया। एक तरफा पैनल वाले अंतरिक्ष यानों पर इसका अधिक असर देखा गया। इनसैट-3डीएस के स्टार सेंसर-2 और इनसैट-3डीआर के स्टार सेंसर-3 को स्विच ऑफ कर दिया गया। इसके अलावा 30 भू-स्थैतिक उपग्रहों में किसी में भी अभी तक कोई बड़ी विसंगति नहीं देखी गई है। जमीनी केंद्रों से नजर आने वाले इसरो के भू-अवलोकन उपग्रह में भी कोई गड़बड़ी या विसंगति नहीं देखी गई।
उपग्रहों की कक्षा में 5 से 6 गुणा तक की गिरावट
इस तरह की सौर घटनाओं के दौरान, सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा के कारण ऊपरी वायुमंडल गर्म हो जाती है और उसका विस्तार होने लगता है। परिणामस्वरूप, निचली कक्षा में जहां उपग्रह रहते हैं वहां वायुमंडलीय घनत्व बढऩे लगता है और उपग्रहों पर अधिक खिंचाव पैदा होता है। इससे कक्षा में उनकी ऊंचाई घटने लगती है। इस घटना में इसरो के उपग्रहों की कक्षा में गिरावट आई है। लगभग 430 किमी की ऊंचाई पर 153 किलोग्राम वजन वाले ईओएस-07 उपग्रह की कक्षा में 300 मीटर की गिरावट आई और 11 मई को वह 600 मीटर हो गई। वहीं, 505 किमी ऊंचाई पर 688 किलोग्राम वजन वाले कार्टोसैट-2एफ की कक्षा में पहले 35 से 40 मीटर और उसके बाद 11 मई को 180 मीटर की गिरावट आई। यानी, लगभग 5 से 6 गुणा तक की गिरावट आई। इसरो ने कहा है कि, नाविक श्रृंखला के उपग्रहों पर इस भू-चुंबकीय तूफान का असर नहीं हुआ है। अगर हुआ होगा तो वह नाम मात्र का होगा।