भारतीय खानपान में मिठाइयों की अपनी कहानी है। किसी भी मिठाई का नाम लेते ही लोग उसके बारे में शेखी बघारने लगते हैं। कई लोग मिठाइयां खाने के साथ ही उसकी उत्पत्ति, निर्माण विधि के बारे में जानकारियां जुटाने का शौक रखते हैं।
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आज हम आपको दक्षिणी राज्यों की एक विशेष मिठाई के बारे में बताने जा रहे हैं…। संभव है बहुत से लोग, खासकर उत्तर भारतीय राज्यों से ताल्लुक रखने वाले, इससे अनजान हों। कर्नाटक में मैसूर के वाडियार राजवंश परिवार के कार्यकाल से ही ‘मैसूर पाक’ मिठाई मशहूर है। इतिहासकार प्रो. नंजराजे अर्स के अनुसार मैसूर महल में सेवाएं देने वाले काकसुरा मादप्पा नामक रसोइए ने पहली बार यह मिठाई महाराजा नाल्वडी कृष्णराज वाडियार को खिलाई थी।
महाराजा को इस नई मिठाई का स्वाद बहुत पसंद आया था। ऐसी मिठाई बनाने वाले मादप्पा की महाराजा ने प्रशंसा करने के साथ ही इस नए व्यंजन का नाम पूछा था।
तब मादप्पा ने तपाक से इसका नाम मैसूर पाक बताया तब से बेसन, घी तथा शक्कर से बनने वाली यह मिठाई इसी नाम से मशहूर है। मादप्पा परिवार का भावनात्मक रिश्ता
मादप्पा काकसुरा के पोते कुमार आज भी मैसूरु शहर में यह मिठाई बेचते हैं।
मादप्पा काकसुरा के पोते कुमार आज भी मैसूरु शहर में यह मिठाई बेचते हैं।
इस व्यंजन के साथ इस परिवार का भावनात्मक रिश्ता होने के कारण कुमार ने मैसूर पाक को लेकर बार-बार तमिलनाडु की दावेदारी का तार्किक अंत करने के लिए जीआइ (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) के लिए आवेदन देने का मन बनाया है।
कई बार इस मिठाई की उत्पत्ति तमिलनाडु में होने का दावा किया गया है। मशहूर है यहां के मैसूर पाक का स्वाद
चिकबल्लापुर में एक परिवार 1954 तक यही मिठाई बेचता था। इसके बाद परिवार बेंगलूरु स्थानांतरित हो गया, आज इसी परिवार की तीसरी पीढ़ी बलेपेटे मैन रोड स्थित दुकान में गत 65 वर्ष से मैसूर पाक बेच रही है।
चिकबल्लापुर में एक परिवार 1954 तक यही मिठाई बेचता था। इसके बाद परिवार बेंगलूरु स्थानांतरित हो गया, आज इसी परिवार की तीसरी पीढ़ी बलेपेटे मैन रोड स्थित दुकान में गत 65 वर्ष से मैसूर पाक बेच रही है।
यहां पर मैसूर पाक खरीदने के लिए हमेशा लोगों का तांता लगा रहता है।