बैंगलोर

राहुल गांधी की प्रज्वल रेवण्णा पर टिप्पणी के खिलाफ PIL खारिज, हाई कोर्ट ने बताया : न्यायिक समय की बर्बादी

मुख्य न्यायाधीश एनवी अंजारिया और न्यायाधीश केवी अरविंद की खंडपीठ ने जनहित याचिका को न केवल गलत बताया, बल्कि इसे न्यायिक समय की बर्बादी करार दिया। पीठ ने न्यायिक समय की बर्बादी के लिए अखिल भारतीय दलित एक्शन कमेटी, बेंगलूरु पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।

बैंगलोरNov 18, 2024 / 11:37 pm

Sanjay Kumar Kareer

अखिल भारतीय दलित एक्शन कमेटी पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया

बेंगलूरु: उच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 2024 के लोकसभा चुनावों में एक सार्वजनिक भाषण के दौरान आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
मुख्य न्यायाधीश एनवी अंजारिया और न्यायाधीश केवी अरविंद की खंडपीठ ने जनहित याचिका को न केवल गलत बताया, बल्कि इसे न्यायिक समय की बर्बादी करार दिया। पीठ ने न्यायिक समय की बर्बादी के लिए अखिल भारतीय दलित एक्शन कमेटी, बेंगलूरु पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। हालांकि, पीठ ने राजनेताओं को उनके सार्वजनिक भाषण में सामान्य सलाह जारी की।
अदालत ने कहा, एक संवैधानिक न्यायालय के रूप में यह न्यायालय केवल यह उम्मीद और आशा कर सकता है कि शालीनता, शिष्टाचार बनाए रखा जाएगा और राजनीतिक क्षेत्र के नेता, जो सार्वजनिक जीवन में हैं, अपने सार्वजनिक भाषणों और सभी व्यवस्थाओं में भाषा का जिम्मेदाराना उपयोग करेंगे। ये गुण सार्वजनिक जीवन में एक व्यक्ति के लिए एक संपत्ति हैं। आजकल वे दुर्लभ और महंगे हो गए हैं। पीठ ने कहा, यह न्यायालय उपरोक्त टिप्पणियों से आगे नहीं जा सकता।

प्रज्वल रेवण्णा को बलात्कारी कहने पर थी आपत्ति

याचिकाकर्ता के अनुसार, शिवमोग्गा में हसन के पूर्व सांसद प्रज्वल रेवण्णा को बलात्कारी कहने वाले राहुल गांधी के भाषण ने शालीनता के मानदंडों को हवा में उड़ा दिया। याचिकाकर्ता ने राष्ट्रीय महिला आयोग, राज्य महिला आयोग, गृह विभाग, कर्नाटक राज्य पुलिस को राहुल गांधी के कथित घृणास्पद भाषण के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश देने की भी मांग की। याचिका में राहुल गांधी को उनके कथित असंवैधानिक भाषणों के लिए बिना शर्त माफी मांगने और श्वेत पत्र प्रकाशित करने के साथ-साथ उन पर जुर्माना लगाने का निर्देश देने की भी मांग की गई।

नेताओं के भाषणों का आकलन करना कोर्ट का काम नहीं

पीठ ने कहा कि वह राहुल गांधी के कथित बयानों और कथनों के गुण-दोषों में नहीं जाना चाहती। अदालत ने यह भी कहा कि राजनीतिक नेताओं द्वारा अपने सार्वजनिक भाषणों या चुनाव प्रचार के दौरान किए जाने वाले सार्वजनिक कथनों का आकलन करना और उनके बारे में राय देना उसका काम नहीं है। पीठ ने कहा, यह देखा जाना चाहिए कि इस तरह के विषय आरोपों की प्रकृति और प्रकार संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत इस न्यायालय के जनहित क्षेत्राधिकार में शायद ही विचार और मनोरंजन के लिए हो सकते हैं। इतना ही नहीं, मुद्दों और पहलुओं के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करने और सामग्रियों की सराहना करने की आवश्यकता है। याचिका में जो आरोप लगाया गया है, उसके संबंध में याचिकाकर्ता के पास अन्य उपाय और उपचार उपलब्ध हैं।

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