बैंगलोर

ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकों को दिए प्रमाण पत्र

तेरापंथ सभा, गाधीनगर के तत्वावधान में साध्वी कंचनप्रभा एवं साध्वी मंजूरेखा के सान्निध्य में ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं को प्रमाण पत्र दिए गए।

बैंगलोरSep 20, 2018 / 04:28 am

शंकर शर्मा

ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकों को दिए प्रमाण पत्र

बेंगलूरु. तेरापंथ सभा, गाधीनगर के तत्वावधान में साध्वी कंचनप्रभा एवं साध्वी मंजूरेखा के सान्निध्य में ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं को प्रमाण पत्र दिए गए। साध्वी कंचनप्रभा ने कहा किजो बहनें ज्ञानशाला में पढ़ा रही हैं स्नातकपूर्ण होने पर प्रकोष्ठ उनका सम्मान करती है, जिससे प्रशिक्षिक बहनों का विकास हो रहा है। इससे उन बहनों का उत्साहवर्धन और ज्ञान का विकास भी होता है। साध्वी मंजूरेखा ने कहा कि पूज्य प्रवर दक्षिण की धरा पर पधार चुके हैं। ज्यादा से ज्यादा बहनें ज्ञानशाला से जुडें़ और प्रशिक्षिका बनकर ज्ञानशाला में अपनी सेवा दें।


कार्यक्रम की शुरुआत ज्ञानशाला बहनों द्वारा मंगलाचरण से हुई। स्वागत क्षेत्रीय संयोजिका नीता गादिया ने किया। महिला मंडल अध्यक्ष अनिता गांधी, चेतना वैदमुथा, लता गांधी के साथ 50 प्रशिक्षिकाएं उपस्थित थीं। संचालन सभा मंत्री प्रकाश लोढ़ा ने किया। आभार मंजू गन्ना ने जताया।

मनाया वार्षिक उत्सव
मंड्या. शहर के सुभाषनगर में स्थित हुच्चाम्मा देवी देवस्थान का वार्षिक उत्सव बुधवार को धूमधाम से मनाया गया। सुबह देवस्थान के पट खोले गए। विशेष पूजा में भाग लेने बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। देवस्थान को भव्य फूलों व रोशनी से सजाया गया। दिनभर भक्तों का तांता लगा रहा। दोपहर को देवस्थान परिसर में भक्तों को प्रसाद वितरित किया गया।

क्रोध आत्मा का प्रबल शत्रु
बेंगलूरु. हनुमंतनगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी सुप्रिया ने बुधवार को प्रवचन में कहा कि क्रोध आत्मा का प्रबल शत्रु है। जब तक क्रोधादि पूर्ण रूप से शांत नहीं होते एवं कषायों की उपशांतता नहीं होती तब तक कितनी भी साधना कर लें मोक्ष नहीं मिलता। कषायों के सेवन से आत्मा मलीन होती है।

व्यक्ति कषायों के वश में अनंत काल तक संसार में परिभ्रमण करते रहता है। जब हमारी इच्छा के अनुकूल कार्य नहीं होता है तब मन के भाव बिगडऩे लगते हैं। व्यक्ति क्रोधावेश में आ जाता है। क्रोध में कभी-कभी व्यक्ति आत्महत्या जैसा जघन्य कदम भी उठा लेता है। सच्चा साधक वही है जो अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति में सहनशीलता का भाव बनाए रखता है। अनेक तपाराधकों ने ४, ५, ९, १४ आदि उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। साध्वी सुमित्रा ने सागरदत्त चरित्र का वांचन किया। संचालन संजय कुमार कचोलिया ने किया।

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