राष्ट्रीय मायोपिया सप्ताह के उपलक्ष्य में शुक्रवार को नारायण नेत्रालय में आयोजित जागरूकता कार्यक्रम को संबोधित कर रहे अस्पताल के अध्यक्ष डॉ. रोहित शेट्टी ने कहा कि मायोपिया आनुवंशिकी और पर्यावरणीय कारकों जैसे कि स्क्रीन पर अधिक समय बिताना, बाहरी गतिविधियों की कमी, डोपामाइन के स्तर में कमी, नजदीकी गतिविधियों में वृद्धि और पोषण से प्रभावित होता है। बच्चों के लिए प्रतिदिन कम से कम 2 घंटे बाहर खेलना, स्क्रीन का समय दिन में 1 घंटे से कम करना, स्वस्थ भोजन करना और नियमित रूप से आंखों की जांच करवाना जरूरी है। उन्होंने बताया कि मायोपिया वैश्विक स्तर पर बढ़ रहा है। वर्तमान में, 28 फीसदी बच्चे मायोपिया से पीड़ित हैं और चश्मा पहनते हैं।
अनुमान है कि 2050 तक लगभग 50 फीसदी आबादी इससे प्रभावित होगी। मायोपिया की घटना देश भर में 4-16 फीसदी तक है। कुछ राज्यों में यह दर 36 फीसदी तक है। मायोपिया और इसके लक्षणों को लेकर स्कूल के शिक्षकों सहित अभिभावकों को भी जागरूक करने की जरूरत है। इससे वे समय रहते प्रभावित बच्चों की पहचान कर सकेंगे।
बाल नेत्र रोग विशेष डॉ. भानुमति एम. ने कहा कि हाल के वर्षों में जीवनशैली में आए बदलावों ने मायोपिया में उल्लेखनीय वृद्धि की है। परिवार के साथ बिताए जाने वाले समय की जगह स्क्रीन टाइम ने ले ली है और घर के बाहर खेलने की जगह इनडोर गेम्स ने ले ली है। मायोपिया को रोकने के लिए हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे घर के बाहर खेलें, ताकि उन्हें पर्याप्त विटामिन डी मिले।