बैंगलोर

अंदरुनी कलह के कारण कमजोर हुई भाजपा की संगठनात्मक एकता

राज्य के तीन विधानसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनाव के नतीजे अप्रत्याशित रहे। खासकर, शिग्गांव और चन्नपट्टण के चुनावी नतीजे राज्य की राजनीति में हलचल मचाने वाले हैं। पारंपरिक रूप से ये सीटें भाजपा और जद-एस का गढ़ रही हैं। लेकिन, उपचुनावों में आश्चर्यजनक हार भाजपा के प्रदेश नेतृत्व के प्रति बढ़ते असंतोष और उनकी रणनीतियों […]

बैंगलोरNov 26, 2024 / 07:09 pm

Rajeev Mishra

राज्य के तीन विधानसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनाव के नतीजे अप्रत्याशित रहे। खासकर, शिग्गांव और चन्नपट्टण के चुनावी नतीजे राज्य की राजनीति में हलचल मचाने वाले हैं। पारंपरिक रूप से ये सीटें भाजपा और जद-एस का गढ़ रही हैं। लेकिन, उपचुनावों में आश्चर्यजनक हार भाजपा के प्रदेश नेतृत्व के प्रति बढ़ते असंतोष और उनकी रणनीतियों की विफलता के संकेत देते हैं।
शिग्गांव को भाजपा का गढ़ माना जाता है। लेकिन, यहां बसवराज बोम्मई के बेटे भरत बोम्मई की हार के बाद भाजपा को अपने सबसे सुरक्षित सीटों पर भी भरोसा घटेगा। सिद्धरामय्या के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ वाल्मीकि निगम में कथित घोटाले, मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) के भूखंड आवंटन मामले में अनियमितताओं के आरोप, वक्फ बोर्ड विवाद और प्रशासनिक विफलता जैसे मुद्दों के बावजूद भाजपा उसका लाभ नहीं उठा सकी। चन्नपट्टण में पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल कुमारस्वामी की हार इस अप्रत्याशित चुनावी नतीजे में एक और आयाम जोड़ती है।
भाजपा के एक नेता ने कहा कि, जिन तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए उनमें से पार्टी की एक ही सीट थी, शिग्गांव। हार के क्या कारण रहे इसकी असली वजह तो गहन विश्लेषण के बाद पता चलेगा। लेकिन, दो महत्वपूर्ण कारक हैं जिसका असर चुनावी नतीजों पर पड़ा है। इनमें से एक है पार्टी में लंबे अर्से से चली आ रही अंदरुनी कलह। कई नेता पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं। उनपर कोई रोक-टोक नहीं है। कई नेता लगातार पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं लेकिन, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह सिलसिला लंबे समय से नन-स्टॉप चला आ रहा है और केंद्रीय नेतृत्व इसपर ध्यान नहीं दे रहा है। जब तक, केंद्रीय नेतृत्व इन मुद्दों का हल नहीं करेगा तब तक राज्य में पार्टी का आगे बढऩा मुश्किल है।
गठबंधन को लेकर भी उठेंगे सवाल
वहीं, पार्टी के कुछ नेता जद-एस के साथ गठबंधन को लेकर भी खुश नहीं है। उनका कहना है कि, केंद्रीय नेतृत्व एचडी कुमारस्वामी को जरूरत से ज्यादा तवज्जो देने लगा है। हालात, अब यह हो गई है कि, भाजपा नेता आलाकमान तक अपनी बात पहुंचाने के लिए एचडी कुमारस्वामी को माध्यम बनाने लगे हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि, केंद्रीय नेतृत्व जद-एस को इतना महत्व दे रहा है जैसे राज्य में भाजपा की पकड़ उन्हीं के बदौलत है। भाजपा नेताओं के भीतर जद-एस के प्रति असंतोष के ये सुर गठबंधन के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।
वोक्कालिगा हार्टलैंड में जद-एस की घट रही लोकप्रियता
दरअसल, चन्नपट्टण से चुनाव जीतने वाले कांग्रेस उम्मीदवार सीपी योगेश्वर भाजपा की टिकट पर चुनाव लडऩा चाहते थे। अब, भाजपा के कुछ नेता योगेश्वर को टिकट नहीं देने के निर्णय को पार्टी की नाकामी बता रहे हैं। योगेश्वर यहां से पांच बार चुनाव जीत चुके हैं और कुमारस्वामी को उन्होंने पिछले चुनाव में भी कड़ी टक्कर दी थी। वे स्थानीय मतदाताओं में लोकप्रिय हैं और उनका जमीनी जुड़ाव काफी गहरा है। कांग्रेस ने उन्हें टिकट देकर चन्नपट्टण का माहौल अपने पक्ष में कर लिया। यहां जद-एस अपने पारंपरिक मतदाता आधार पर बहुत अधिक निर्भर था और योगेश्वर के कांग्रेस के साथ आने के बाद उसका मुकाबला नहीं कर सका। यह जमीनी स्तर पर जद-एस के घटते जुड़ाव को उजागर करता है। निखिल कुमारस्वामी का हार न सिर्फ उनके राजनीतिक भविष्य के लिए बल्कि क्षेत्रीय पार्टी के लिए भविष्य में चीजें और कठिन होने के संकेत हैं। ये वोक्कालिगा हार्टलैंड में जद-एस का प्रभाव कम होने के भी संकेत हैं।
संडूर में कांग्रेस की सटीक रणनीति
संडूर में भाजपा को उलटफेर का विश्वास था लेकिन, कांग्रेस अपने मजबूत गढ़ को बचाने में सफल रही। वाल्मीकि निगम घोटाले के केंद्र बल्लारी में भाजपा ने बंगारु हनुमंत को उम्मीदवार बनाया जो इस मुद्दे को लेकर लगातार हमलावर थे। लेकिन, कांग्रेस को अपनी जमीनी ताकत और संगठन का फायदा मिला। बंगारु हनुमंत को कांग्रेस ने बाहरी उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जनार्दन रेड्डी के खिलाफ भी जमकर प्रचार किया।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजयेंद्र की बढ़ेगी चुनौती
तीनों क्षेत्रों में मिली हार के बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजयेंद्र की चुनौती बढ़ेगी। आंतरिक असंतोष से जूझ रही भाजपा में अब उम्मीदवारों के चयन और भाजपा-जद-एस गठबंधन को लेकर भी सवाल उठेंगे। विजयेंद्र पर वंशवाद का आरोप पार्टी के भीतर से ही लगता रहा है। कार्यकर्ताओं ने पार्टी नेतृत्व के फैसले पर असंतोष जताया है जिससे भाजपा की संगठनात्मक एकता और कमजोर हुई है। वक्फ संपत्तियों के विवाद और कथित भूमि-हथियाने जैसे मुद्दों को उजागर करने के प्रयास के बावजूद, भाजपा प्रभावी ढंग से मतदाताओं को एकजुट नहीं कर सकी।
सत्तारूढ़ कांग्रेस का बढ़ेगा आत्मविश्वास
कांग्रेस के लिए उपचुनाव के नतीजे आत्मविश्वास बढ़ाने वाले साबित होंगे। विवादों में घिरी सिद्धरामय्या की सत्ता अब और मजबूत होगी। शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष के हमलों को कुंद करने का उसे मजबूत हथियार मिला है। इस जीत का श्रेय उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या को दिया है लेकिन, आने वाले दिनों में पार्टी के भीतर क्या हलचल होती है यह देखना होगा। बेंगलूरु ग्रामीण लोकसभा क्षेत्र में मिली हार के बाद चन्नपट्टण की जीत डीके शिवकुमार की वोक्कालिगा बेल्ट में आत्मविश्वास बढ़ाने वाली है।

Hindi News / Bangalore / अंदरुनी कलह के कारण कमजोर हुई भाजपा की संगठनात्मक एकता

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.