बैंगलोर

एस्ट्रोसैट ने किया जेलीफिश आकाशगंगा का अध्ययन

भारतीय खगोल वैज्ञानिकों को पहली बार मिली कई अहम जानकारियां, यूवीआईटी ने किया दुर्लभ और विलक्षण चित्रण

बैंगलोरMay 02, 2018 / 06:29 pm

Rajeev Mishra

बेंगलूरु. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित खगोल वेधशाला एस्ट्रोसैट ने जेलीफिश आकाशगंगा के दुर्लभ चित्रण किए हैं। एस्ट्रोसैट के उपकरण द्वारा ली गई विलक्षण तस्वीरों और अध्ययनों से भारतीय खगोल वैज्ञानिकों को कई जानकारियां पहली बार मिली हैं।
इसरो की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार एस्ट्रोसैट में लगे अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (यूवीआईटी) ने ये तस्वीरें ली हैं। इस आकाशगंगा का वैज्ञानिक नाम जे-0201 है।
भारतीय ताराभौतिकी संस्थान के प्रोफेसर (से.नि.) रमेश कपूर ने बताया कि अंतरिक्ष में आकाशगंगाओं के अनेक पुंज हैं। उन पुंजों में अनगिनत सदस्य हो सकते हैं। यह संख्या सैकड़ों से लेकर हजारों तक हो सकती हैं। पर इन आकाशगंगाओं के बीच का अंतरिक्ष विशाल होकर भी एकदम खाली नहीं है। उनके बीच खाली पड़े विशाल अंतरिक्ष में बेहद विरल अवस्था में किंतु अति ऊर्जावान गैसों की मौजूदगी है। जब किसी पुंज के गुरुत्व के आकर्षण में बंधी कोई आकाशगंगा उसकी ओर गिरने लगती है तो उनका सामना उन बेहद ऊर्जावान गैसों से होता है। ये गैस आकाशगंगा की राह में एक शक्तिशाली बयार के रूप में सामने आते हैं। गिरते समय अगर आकाशगंगा का वेग अधिक रहा तो यह बयार उस आकाशगंगा की अपनी गैस को ही अलग कर देती है। यह गैस इस आकाशगंगा के पीछे एक पूंछ की आकृति लेती जाती है। इस प्रकार की आकाशगंगाएं जिनमें ऐसे तंतु (पूंछ) देखे गए हैं उनकी संख्या 400 के लगभग है।
जेलीफिश के तंतुओं में बनते हैं तारे
अबल-8 5 नामक आकाशगंगा पुंज में भी ऐसी एक आकाशगंगा है जिसे जेलीफिश आकाशगंगा की संज्ञा दी गई है। उसकी संख्या है जे-0201 और उसी आकाशगंगा की तस्वीरें यूवीआईटी से ली गई है। तस्वीरें बेहद विलक्षण हैं और इनके तंतुओं में नए तारों के निर्माण का संकेत मिलता है। भारतीय खगोल वैज्ञानिकों को यह जानकारी एस्ट्रोसैट के जरिए ही मिली। इनके अध्ययन से इन तंतुओं में तारों के निर्माण की प्रक्रिया पर रोशनी पड़ेगी। एस्ट्रोसैट को 28 सितम्बर 2015 को छोड़ा गया और उसे 6 50 किमी ऊंची कक्षा में स्थापित किया गया। इसमें 5 महत्वपूर्ण उपकरण हैं और इसका जीवनकाल भी 5 वर्ष है। कक्षा में स्थापना के बाद से ही यह भारतीय वैज्ञानिकों के यह वेधशाला महत्वपूर्ण जानकारियां उलब्ध करा रही है।
ब्लैकहोल को भी मिलता है नवजीवन
प्रो. कपूर ने कहा कि कई बार ये गैस इसी आकाशगंगा के केंद्रीय भागों में जा पहुंचती है। इससे वहां मौजूद ब्लैकहोल को एक नया जीवन मिल जाता है और यह विशाल ऊर्जा का विकिरण करते हुए चमक उठते हैं। इस तरह की अनेक जेलीफिश आकाशगंगाएं वैज्ञानिक खोज चुके हैं जिनके केंद्र में ब्लैक होल सक्रिय हैं। प्रश्न यह है कि अन्य सामान्य आकाशगंगाओं के मुकाबले जेलीफिश आकाशगंगाओं में उनके केंद्र के विशाल ब्लैकहोल क्यों ज्यादा सक्रिय हैं। जाहिर है जहां गैस मिलेगी वहीं ब्लैकहोल भी चमकेगा।
 

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