बैंगलोर

रोगजनक बैक्टीरिया की हो सकेगी शीघ्रता से पहचान

आइआइएससी के वैज्ञानिकों ने रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी और कृत्रिम बुद्धिमता के संयोजन से विकसित की नई तकनीक
संक्रामक रोगों के इलाज में मददगार

बैंगलोरDec 26, 2022 / 06:22 pm

Rajeev Mishra

रोगजनक बैक्टीरिया की हो सकेगी शीघ्रता से पहचान

बेंगलूरु. भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी) के वैज्ञानिकों ने रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी और कृत्रिम बुद्धिमता के अद्भूत प्रयोग से रोगजनक बैक्टीरिया की जल्द पहचान की नई तकनीक विकसित की है। इससे संक्रामक रोगों के लक्षणों की तत्काल पहचान और इलाज में मदद मिल सकती है।
आइआइएससी ने कहा है कि बैक्टीरिया संक्रमण की पहचान की वर्तमान कल्चर या न्यूक्लिक एसिड प्रवर्धन आधारित विधियां काफी जटिल और पद्धति काफी समय खपाऊ हैं। आइआइएससी में शिव उमापति के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम लंबे समय से डायग्नोस्टिक एवं आरोग्य सेवाओं में रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी एवं कृत्रिम बुद्धिमता (एआइ) का संयोजन कर नए अनुप्र्रयोगों (एप्लीकेशन) के विकास पर काम कर रही है। टीम ने हाल ही में प्रदर्शित किया था कि कैसे कोविड-19 जैवसूचकों (बायोमार्कर) का पता लगाने में रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी एवं एआइ के संयोजन का प्रयोग किया जा सकता है। इस उपलब्धि के लिए उन्हें नॉसकॉम एआइ गेमचेंजर अवार्ड समारोह में चैलेंजर अवार्ड से सम्मानित भी किया गया।
कारगर एप्लीकेशन

एक नए अध्ययन में शिव उमापति और दीपक कुमार सैनी की टीम ने रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी एवं एआइ के संयोजन से ऐसा एप्लीकेशन तैयार किया जिससे विभिन्न प्रकार के नैदानिक नमूनों में रोगजनक बैक्टीरिया की शीघ्रता से पहचान की जा सकती है। इस विधि में वैज्ञानिकों ने रमन माइक्रोस्कोपी में एक विशेष प्रकार के ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप का उपयोग कर नमूने पर लेजर बीम फ्लैश किया। इससे बैक्टीरिया द्वारा बिखेरा हुआ प्रकाश एक अद्वितीय स्पेक्ट्रम बनाता है। इससे वैज्ञानिक या चिकित्सक व्यक्तिगत रूप से उनकी पहचान कर सकते हैं।
तकनीक का सफल प्रयोग

शिव उमापति ने बताया कि अलग-अलग नमूनों से निर्मित विभिन्न प्रकार के स्पेक्ट्रमों के बीच सूक्ष्म अंतर को आंखों से देखकर पहचानना और समझना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। लेकिन, कृत्रिम बुद्धिमता (एआइ) यहां मददगार साबित होती है। उन्होंने अस्पतालों से प्राप्त विभिन्न संक्रमण युक्त नमूनों में व्यापक रूप से फंसे आठ बैक्टीरिया प्रजातियों से बने स्पेक्ट्रम की पहचान की और अंतर स्पष्ट किया। इसके लिए रेजिडुअल नेटवर्क (रेसनेट) नामक एक अत्याधुनिक डीप लर्निंग मॉडल का प्रयोग किया गया। बैक्टीरिया संक्रमित नमूने डॉ स्नेहा सी. और उनकी टीम ने बंगलौर मेडिकल कॉलेज एवं रिसर्च इंस्टीट्यूट से संग्रहित किए गए थे। इन नमूनों की जांच बिना कल्चर किए रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी से की गई। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस मॉडल से 99.99 फीसदी सटीकता के साथ विविध बैक्टीरिया प्रजातियों की पहचान की जा सकी।
त्वरित उपचार में सहायक

शिव उमापति ने कहा कि अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि एआइ के उपयोग से विभिन्न रोगों के डायग्नोसिस में काफी मदद मिल सकती है। इससे काफी कम समय में बैक्टीरिया संक्रमण से होने वाले रोगों की पहचान कर उपचार एवं प्रबंधन की दिशा में कदम उठाया जा सकता हैै।

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