दरअसल, यह प्रयोग इंफ्लुएंजा वायरस पर हुआ है। ‘इन्फ्लुएंजा ए वायरस’ (आइएवी) वायरस का एक जाना-माना समूह है जिसके उप-प्रकार पक्षियों और मनुष्यों सहित कुछ स्तनधारियों में ‘फ्लू’ का कारण बनते हैं। इन वायरसों की सतह पर इनफ्लुएंजा हेमगलगुटिनिन (एचए) नामक प्रोटीन होते हैं जो कोशिकाओं की झिल्ली से बंधकर संक्रमण की शुरुआत करते है। वैज्ञानिकों ने इस प्रोटीन का गहन अध्ययन और संश्लेषण किया। इसी एचए प्रोटीन के अंदर एक रिपोर्टर वायरस ‘टेट्रा सिस्टीन’ को टैग किया गया है जो बायआर्सेनिक रंजक (बाय आर्सेनिक डाइस) की उपस्थिति में प्रदीप्तियां उत्पन्न करता है और माइक्रोस्कोप के जरिए लाइव तस्वीरें हासिल की जा सकती हैं। इस शोध में अमरीका और इटली के वैज्ञानिकों के साथ आइआइएससी की छात्रा वहीदा खातून की भागीदारी रही।
शशांक त्रिपाठी ने बताया कि यह शोध इंफ्लुएंजा वायरस पर हुआ है लेकिन कोरोना वायरस को लेकर भी ऐसा शोध चल रहा है। इस अध्ययन से यह पता चलता है कि वायरस कोशिकाओं के केंद्रक से ऊपर की ओर कैसे जाता है अथवा उससे बाहर निकलकर कैसे दूसरी कोशिकाओं को संक्रमित करता है। इस अध्ययन के आधार पर ऐसे एंटी-वायरल दवाओं का विकास हो सकताहै जो वायरस प्रोटीन के उत्पादन, उसकी गति अथवा जमाव को रोक सके। उन्होंने बताया कि इसी सिद्धांत पर उनकी टीम एक ऐसे ही ड्रग का विकास भी कर रही है।