माफिया और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी को पंजाब की रोपड़ जेल से लाने के बाद से बांदा मंडल कारागार हाई सिक्योरिटी जेलों में शुमार है। तभी से अधीक्षकों के कतराने का सिलसिला भी शुरू हुआ। पिछले साल 16 मई को उन्नाव से जेल अधीक्षक एके सिंह का बांदा ट्रांसफर हुआ। वह 17 अक्तूबर को मेडिकल लीव पर चले गए, फिर लौटकर नहीं आए। 12 नवंबर को बरेली से विजय विक्रम सिंह को बांदा ट्रांसफर किया गया। वे एक दिन के लिए भी नहीं आए। 29 नवंबर को उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। तब से प्रभारी जेल अधीक्षक के रूप में जेलर वीरेन्द्र वर्मा काम कर रहे हैं। बीते जून में शासन ने लखीमपुर खीरी से पवन प्रताप सिंह को बांदा ट्रांसफर किया। वह भी ज्वाइन करने नहीं आए। अब उनका स्थानांतरण बाराबंकी हो गया है।
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तन्हाई बैरक में बंद मुख्तार अंसारी की आवभगत में बीते माह यहां के पांच कर्मचारियों पर गाज गिरी थी। डीएम और एसपी की संयुक्त जांच रिपोर्ट पर डिप्टी जेलर वीरेश्वर प्रताप सिंह और चार बंदी रक्षक निलंबित किए गए थे। इससे पहले बीते वर्ष छह जून की शाम कारागार से एक बंदी भी गायब हो चुका है जो सात जून को शाम चार बजे नाटकीय ढंग से जेल के अंदर ही बरामद दर्शाया गया। चोरी के आरोपित ने 24 घंटे लापता रहकर हाई सिक्योरिटी जेल की सुरक्षा की पोल खोल दी थी।
माना जा रहा है कि मुख्तार अंसारी की वजह से कोई अफसर इस जेल में नहीं रुकना चाहता। बागपत में 09 जुलाई 2018 को मुख्तार के करीबी मुन्ना बजरंगी की गैंगवार में हत्या हो गई थी। पिछले साल 14 मई को चित्रकूट जेल में वसीम काला व मेराजुद्दीन की गैंगवार में हत्या कर दी गई। इन मामलों में अफसर व जेल स्टाफ कार्रवाई की जद में फंसे। मुख्तार की सुरक्षा को खतरा और खुद मुख्तार के अपराध में सक्रिय होने की वजह से अफसर दोतरफा खतरा महसूस करते हैं।