मशीन से तराशने के बाद शजर पत्थर (Sajar Pathar) में झाडियां, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, मानव और नदी की जलधारा के चमकदार रंगीन चित्र (Colorfull Shazar) उभरते हैं। बांदा के स्थानीय लोगों के मुताबिक, जब शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में किरणें शजर पत्थरों पर पड़ती हैं तो इन पर आकृतियां उभरती हैं। उनका कहना है कि चांदनी की किरणों जब पत्थर पर पड़ती हैं तो उनके बीच में जो भी आकृति आती है, वह इन पत्थरों पर उभर आती है। वहीं, वैज्ञानिकों का मानना है कि शजर पत्थर पर उभरने वाली आकृति फंगस ग्रोथ है।
Shazar stone Jewellery : शौकीन लोग अंगूठी में जड़वाते हैं
शजर पत्थरों का इस्तेमाल आभूषणों, कलाकृति जैसे ताजमहल, सजावटी सामान व अन्य वस्तुएं जैसे वाल हैंगिंग में लगाने के काम में प्रयोग होता है। मुगलकाल में शजर पत्थरों के इस्तेमाल से बेजोड़ कलाकृतियां बनाई गईं। बांदा और लखनऊ (Shazar Stone Lucknow) में शजर पत्थर से बने आभूषणों (Shazar stone Jewellery) का बड़ा कारोबार होता है। शौकीन लोग इसे अंगूठी में नग के तौर पर भी जड़वाते हैं। राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हस्तशिल्पी द्वारका प्रसाद सोनी बताते हैं कि शजर पत्थर की पहले कटाई और घिसाई होती हैं, जिसके बाद इसे मनचाहे आकर में ढाला जाता है। सोने चांदी में जड़ने के बाद शजर की कीमत और बढ़ जाती है।
शजर पत्थरों का इस्तेमाल आभूषणों, कलाकृति जैसे ताजमहल, सजावटी सामान व अन्य वस्तुएं जैसे वाल हैंगिंग में लगाने के काम में प्रयोग होता है। मुगलकाल में शजर पत्थरों के इस्तेमाल से बेजोड़ कलाकृतियां बनाई गईं। बांदा और लखनऊ (Shazar Stone Lucknow) में शजर पत्थर से बने आभूषणों (Shazar stone Jewellery) का बड़ा कारोबार होता है। शौकीन लोग इसे अंगूठी में नग के तौर पर भी जड़वाते हैं। राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हस्तशिल्पी द्वारका प्रसाद सोनी बताते हैं कि शजर पत्थर की पहले कटाई और घिसाई होती हैं, जिसके बाद इसे मनचाहे आकर में ढाला जाता है। सोने चांदी में जड़ने के बाद शजर की कीमत और बढ़ जाती है।
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400 साल पहले हुई थी खोजSajar Pathar हमेशा से ही केन नदी में मौजूद था, लेकिन 400 साल पहले अरब से आये लोगों ने इसकी पहचान की। वह इसकी खूबसूरती देखकर दंग रह गये थे। इन पत्थरों पर कुदरती रूप से पेड़, पत्ती की आकृति उकेरी थी, जिसके कारण उन्होंने इसका नाम शजर रख दिया।
शजर पत्थर को ब्रिटेन ले गई थीं महारानी विक्टोरिया
ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में ब्रिटेन की महारानी क्वीन विक्टोरिया (Queen Victoria) के लिए दिल्ली दरबार में नुमाइश लगाई गई थी। इसमें रानी विक्टोरिया को शजर पत्थर इतना पंसद आया था वह इसे अपने साथ ब्रिटेन भी ले गई थीं।
ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में ब्रिटेन की महारानी क्वीन विक्टोरिया (Queen Victoria) के लिए दिल्ली दरबार में नुमाइश लगाई गई थी। इसमें रानी विक्टोरिया को शजर पत्थर इतना पंसद आया था वह इसे अपने साथ ब्रिटेन भी ले गई थीं।
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मुसलमानों के बीच खासा लोकप्रिय है शजरदुनिया भर में खासकर मुस्लिम देशों में शजर पत्थर की खासी डिमांड (Shazar Stone Demand) है। मुसलमानों के बीच में इस पत्थर का विशेष महत्व है। वह इसे कुदरत का नायाब तोहफा मानते हैं और इस पर कुरान की आयतें लिखवाते हैं। इतना ही नहीं मक्का जाने वाले हजयात्री इस पत्थर को लेकर जाते हैं। व्यापारियों के मुताबिक, ईरान में इसकी मुंहमांगी कीमत मिलती है। कुछ लोगों का मानना है कि इस पत्थर को पहनने से बीमारियां दूर भागती हैं।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, केन नदी का पुराना नाम ‘कर्णावती’ नदी था। बाद में इसे ‘किनिया’ और फिर ‘कन्या’ कहा जाने लगा। अब इसे केन नदी कहा जाता है। ‘केन (Ken River) एक कुमारी कन्या है’ का उल्लेख महाभारत काल में मिलता है।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, केन नदी का पुराना नाम ‘कर्णावती’ नदी था। बाद में इसे ‘किनिया’ और फिर ‘कन्या’ कहा जाने लगा। अब इसे केन नदी कहा जाता है। ‘केन (Ken River) एक कुमारी कन्या है’ का उल्लेख महाभारत काल में मिलता है।