इसमें स्थानीय महिला स्व सहायता समूह महकोनी के महिला सदस्यों से एवं ग्राम दलदली के लघु वनोपज संग्राहक सदस्यों से बहेड़ा वृक्ष के संबंध में चर्चा की गई। जापानी दल के साथ डॉ अरविंद सकलानी, एग्रीबॉयोटेक्नोलॉजी बैंगलोर द्वारा भी बहेड़ा वृक्ष से संबंधित विभिन्न जानकारी प्राप्त की गई, जिसमें बहेड़ा वृक्ष के फल का उपयोग त्रिफला चूर्ण बनाने में किया जाता है। जापानी दल के सहयोग के लिए वन अधिकारी वन अमले के साथ उपस्थित था।
बहेड़ा के उपयोग और फायदे
हाथ पैर की जलन में बहेड़े के बीज को पानी के साथ पीसकर लगाने से लाभ मिलता है। बहेड़े के पत्ते और चीनी का काढ़ा बनाकर पीने से कफ से निजात मिलती है। छाल का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहने से भी खांसी और बलगम से छुटकारा मिलता है। बहेड़े का छिलका और मिश्री युक्त पेय पीने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है। बहेड़े के आधे पके हुए फल को पीसकर पानी के साथ सेवन करने से कब्ज से छुटकारा मिलता है। बहेड़े को थोड़े से घी में पकाकर खाने से गले के रोग दूर होते हैं। बहेड़ा के चूर्ण का लेप बनाकर बालों की जड़ों पर लगाने से असमय सफेद होना रुक जाता है।
बहुत ऊंचे फैले हुए और लंबे पेड़
बहेड़ा या बिभीतकी के पेड़ बहुत ऊंचे फैले हुए और लंबे होते हैं। इसके पेड़ 18 से 30 मीटर तक ऊंचे होते हैं, जिसकी छाल लगभग 2 सेंटीमीटर मोटी होती है। इसके पेड़ पहाड़ों और ऊंची भूमि में अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इसकी छाया स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है। इसके पत्ते बरगद के पत्तों के समान होते हैं और पेड़ लगभग सभी प्रदेशों में पाए जाते हैं। इसका फल अण्डे के आकार का गोल और लम्बाई में 3 सेमी तक होता है, जिसे बहेड़ा के नाम से जाना जाता है। इसके अंदर एक मींगी निकलती है जो मीठी होती है। औषधि के रूप में अधिकतर इसके फल के छिलके का उपयोग किया जाता है।
बढ़ती है रोग प्रतिरोधक क्षमता
बहेड़ा रोग प्रतिरोधक क्षमता तो बढ़ाता ही है कब्ज को दूर भगाने में कारगर है, अमाशय को मजबूत बनाता है, इसकी अन्य खासियत भूख बढ़ाना, पित्त दोष व सिरदर्द को दूर करता है। आंखों या दिमाग को स्वस्थ रखता है। बहेड़ा के बीज का चूर्ण लगाने से घाव का रक्तस्राव रुक जाता है। इसके बीज स्वाद में मीठे होते हैं। बहेड़ा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि सभी प्रकार की मिट्टी में इसकी पैदावार की जा सकती है। हालांकि सबसे अच्छी पैदावार नम, रेतीली और चिकनी बलुई मिट्टी में होती है।