यहां लाइम स्टोन निकालने के लिए हर दिन बम ब्लास्ट किया जाता है। इस ब्लास्टिंग की तीव्रता इतनी अधिक होती है कि कई बार प्लांट से पत्थर छिंटककर मेन रोड तक आ जाते हैं। इस ब्लास्टिंग के चलते आधा दर्जन गांवों के अलावा 6 और गांवों में घरों की दीवारों पर दरारें पड गई हैं। बम ब्लास्टिंग की तीव्रता का अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि लोगों ने घरों के सामान को ऊंचाई वाली जगह पर रखना ही छोड़ दिया है।
ऐसा इसलिए क्योंकि बम ब्लास्ट होने के बाद कई बार भारी सामान नीचे गिर जाते हैं। इससे सामान के नुकसान का डर तो बना ही रहता है। गलती से भी ये भारी सामान किसी व्यक्ति के ऊपर गिर गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे। पिछले दिनों तो इतनी तीव्रता के बम का विस्फोट किया गया का कि करीब 15 से 20 किलो वजनी पत्थर का एक टुकड़ा प्लांट के अंदर से सीधे मेन रोड तक आ गया था। गनीमत कि यह किसी के ऊपर नहीं गिरा। वरना बड़ी घटना हो सकती थी।
बता दें कि प्लांट में की जा रही विस्फोटिंग नियमत: गलत है। यहां इतनी तीव्रता के बम नहीं फोड़ने चाहिए जिससे आसपास के लोगों को परेशानी पेश आए। लेकिन, प्लांट के जिम्मेदार हैं कि मानने को तैयार ही नहीं। यही वजह है कि कई गंभीर शिकायतों के बाद भी कंपनी ने ध्यान नहीं दिया। वहीं, बलौदाबाजार प्रशासन भी मामले को लेकर गंभीर नजर नहीं आ रहा। शिकायतों की लंबी फेहरिस्त के बाद भी कार्रवाई करना दूर, अधिकारी प्लांट में कम तीव्रता वाले बम फोड़ने के लिए भी जिम्मेदारों को नहीं मना पाए हैं। बता दें कि सबसे ज्यादा प्रभावित गांवों में रवान, भरसेली, पौसरी, कुकुरदी, कर्मंडी, मुढीपार शामिल हैं। इनके अलावा भद्रापाली, करमनडीह, मल्दी, अर्जुनी, खैरताल गांव के लोग भी ब्लास्ट से प्रभावित हैं।
गांववालों का आरोप है कि लोगों की जान पर आफत बनने वाले और प्राकृतिक संसाधनों का बेजा दोहन करने वालों पर सरकारी अफसर मेहरबान हैं। गांववालों की मानें तो इसकी वजह वो मेहमान नवाजी है जो समय-समय पर प्लांट के अफसरों द्वारा सरकारी मुलाजिमों के लिए की जाती है। कुछ गांववालों ने तब सीमेंट प्लांट की अवध गतिविघियों के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश की तो उन्हें ही झूठ केस में फंसाने की धमकी दे दी गई। मजबूरन जो लोग हिम्मत दिखाकर आगे आए, वे भी पीछे हट गए। गांववालों का कहना है कि वे सालों से इस परेशानी से जूझ रहे हैं। अफसरों को भी सब पता है। फिर भी वे कोई कार्रवाई नहीं करते।
बलौदाबाजार जिले में छह प्रमुख सीमेंट प्लांट हैं। यहां खदानों में विस्फोट करने के लिए बारूद भंडारण कक्ष बनाए गए हैं। ये भंडार कक्ष का घनी आबादी वाले इलाकों के आसपास बनाए गए हैं। जाहिर है कि आसपास के लोगों के जान की सुरक्षा भगवान भरोसे है। अचानक यहां आगजनी होती है तो भारी तबाही मचेगी। इसे लेकर ग्रामीणों में भारी भय व्याप्त है। बता दें कि इन सीमेंट कंपनियों द्वारा ग्रामीण विकास, एनजीओ, पर्यावरण सुरक्षा, कॉरपोरेट, सामाजिक दायित्व आदि के माध्यम से लोक-लुभावन नारे देकर फर्जी आंकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं। असल में कंपनियां ये कार्यक्रम अपनी खामियों को छिपाने के लिए आयोजित करती हैं।
सीमेंट प्लांट में लाइम स्टोन (चूना पत्थर) निकालने के लिए बम विस्फोट किया जाता है। अधिक तीव्रता वाले बम फोड़ने की वजह से यहां जमीन के नीचे दबे चट्टानों पर बड़ी-बड़ी दरारें आने लगी हैं। इनसे भूमिगत जल रिसकर खदानों में पहुंच रहा है। सीमेंट प्लांट वाले इस पानी का इस्तेमाल अपने लिए कर रहे हैं। दूसरी ओर गांवों का ग्राउंड वॉटर लेवल नीचे जाने लगा है। इससे तालाब, कुंए… सब सूखने लगे हैं। इसके चलते गर्मी से पहले ही हजारों की आबादी के सामने जल संकट गहराने लगा है। लोग इस वजह से काफी परेशान हैं।
माइनिंग करते कंपनी गांवों की सीमा तक पहुंच चुकी है। लाइम स्टोन के लिए खुदाई करते प्लांट वाले कुकुरदी और करमनडीह गांव तक पहुंच चुके हैं। इधर, भरसेली का स्कूल डेंजर जोन में आ गया है। प्लांटवाले यहां से करीब ही माइनिंग कर रहे हैं। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा को लेकर गांव का गांव चिंतित है। गौरतलब है कि जब कोई जमीन खदान के लिए लीज पर दी जाती है तो निर्धारित गहराई तक खुदाई करने की अनुमति दी जाती है। खुदाई के बाद खदानों को भरकर समतल करने का भी नियम है। लेकिन, यहां कंपनी निर्धारित गहराई से एक मीटर कम खुदाई कर इसे रेकॉर्ड में उपयोगी बताकर अपनी जिम्मेदारी से बच रही है।
खान सुरक्षा महानिदेशालय को पहले ही इस बारे में सूचना दे चुके हैं। वही इसकी जांच करेंगे। केके बंजारे, खनिज अधिकारी खदान में तय सरकारी नियमों के हिसाब से ही ब्लास्ट किया जा रहा है।
राजू जोशी, माइंस हैड