बना आस्था का केंद्र
कसडोल के पास डोंगरा गांव के शीतला चौक पर पीपल का पुराना पेड़ है। उसी स्थान पर स्थित पीपल के इस पेड़ पर पक्षी ने अपना डेरा जमाया है। लोगों में इसे रामायण के पात्र जटायु की झलक नजर आई, वहीं लोगों की आस्था ने उस पक्षी के आसपास रुपए-पैसों का ढेर लगा दिया। श्रद्धानवत लोगों ने फूल और पूजन सामग्रियां भी चढ़ाई। ये पक्षी पूरे दिन चर्चा का विषय बना रहा।
कसडोल के पास डोंगरा गांव के शीतला चौक पर पीपल का पुराना पेड़ है। उसी स्थान पर स्थित पीपल के इस पेड़ पर पक्षी ने अपना डेरा जमाया है। लोगों में इसे रामायण के पात्र जटायु की झलक नजर आई, वहीं लोगों की आस्था ने उस पक्षी के आसपास रुपए-पैसों का ढेर लगा दिया। श्रद्धानवत लोगों ने फूल और पूजन सामग्रियां भी चढ़ाई। ये पक्षी पूरे दिन चर्चा का विषय बना रहा।
तेजी से वायरल हो रहा पक्षी वॉट्सऐप, फेसबुक आदि प्लेटफॉर्म के जरिए ये सूचना काफी तेजी से फैली। ऐसे में दूर-दराज से लोग इस पक्षी को देखने के लिए डोंगरा पहुंचते रहे। इधर, पत्रिका ने जब इसे लेकर वन विभाग के अफसरों से बात की तो उनका कहना था, ये उल्लू की एक प्रजाति है। अधिक बुजुर्ग होने की वजह से इसके बाल झड़ गए हैं, इसलिए लोगों को यह जटायु की तरह दिख रहा है।
रावण से युद्ध में घायल होकर यहां गिरे थे जटायु माना जाता है कि जिस जगह जटायु रहते थे और जहां उनका रावण से युद्ध हुआ था, वह जगह तत्कालीन कोशल प्रदेश के दण्डकारण्य और अब के छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मौजूद है। फरसगांव के आगे करीब दो किलोमीटर दूर जगदलपुर रोड पर हाईवे 30से नीचे उतरकर दायीं ओर जंगल में 600 मीटर भीतर यह स्थान है, जिसे जटायु शिला कहते हैं।
जंगल से घिरे इस इलाके में विशालकाय चट्टान और उस पर अनेक बड़े पत्थर रहस्यमयी ढंग से एक-दूसरे से सटे या खड़ी बनावट में देखने को मिलते हैं। यहां का रास्ता कोई नहीं बताता, यहां कोई संकेतक भी नहीं लगा है। घने जंगल में खोजते हुए आगे बढऩा पड़ता है। यह जंगल में एक ऐसी जगह है, जहां दिन में भी जाने में डर लगे। लोग यहां समूह में ही जाना पसंद करते हैं।