बालोद

कंगला मांझी सरकार के सैनिक आज भी जीवित, उनके आंदोलन को बढ़ा रहे आगे

आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन के संरक्षण व अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में गठित मांझी सरकार के सैनिक आज भी जिंदा हैं।

बालोदDec 04, 2024 / 11:36 pm

Chandra Kishor Deshmukh

40th Martyrdom Day today : आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन के संरक्षण व अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में गठित मांझी सरकार के सैनिक आज भी जिंदा हैं। संगठन 1942 को बनाया था। नेतृत्वकर्ता कंगला मांझी (हीरा सिंह देव) की 40वीं शहादत दिवस पर 5 दिसंबर को उनकी समाधि डौंडीलोहारा विकासखंड के बघमार में मांझी सरकार के सैनिक सलामी देंगे। मांझी सरकार का निधन 5 दिसंबर 1984 को हुआ था।

राजमाता फुलवा देवी भी होंगी शामिल

कार्यक्रम में महाराष्ट्र के चिमूर लोकसभा सांसद नामदेव किरसान, राजमाता फुलवा देवी कांगे भी शामिल होंगी। कंगला मांझी उर्फ हीरा सिंह को को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। आयोजन के एक दिन पहले ही महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, झारखंड, दिल्ली से सैनिक पहुंच रहे हैं।
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अब तक एक हजार से अधिक सैनिक पहुंच चुके

अभी तक एक हजार से अधिक मांझी सरकार के सैनिक यहां पहुंच चुके हैं। आयोजन तीन दिन का होता है। पहले दिन 5 दिसंबर को कंगला मांझी को श्रद्धांजलि दी जाएगी। कंगला मांझी सम्मान समारोह व पुस्तक विमोचन भी होगा। कार्यक्रम में दिल्ली, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़ से लगभग 5 हजार सैनिक आएंगे। 6 दिसंबर को कांकेर सांसद भोजराज नाग शामिल होंगे। 7 दिसंबर को खेलकूद, मड़ई मेला व सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।
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बघमार में होती थी सैनिकों की बैठक

मांझी सैनिक मध्यप्रदेश के राजीव चक्रधारी ने जानकारी दी कि आदिवासी समाज के क्रांतिकारी सदस्य मांझी सरकार का जन्म बस्तर के तेलावट में हुआ था। अंग्रेजों के अन्याय के खिलाफ 1913 से वे स्वतंत्रता आंदोलन में जुड़ गए। बालोद जिले के डौंडीलोहारा विकासखंड के गांव बघमार को मुख्यालय बनाकर अभियान शुरू किया। वे दो साल तक एकांतवास में रहे। उनके राष्ट्रहित आंदोलन से लोगों में एक नया जोश आया। इसके बाद से देशभर में मांझी के सैनिक तैयार होने लगे।

अंग्रेजों ने की थी आदिवासियों को दबाने की कोशिश

कंगला मांझी के पुत्र केडी कांगे ने बताया कि 1914 में अंग्रेजों ने बस्तर के आदिवासियों को दबाने की कोशिश की थी। सैकड़ों लोगों की हत्याएं हुई। इसी दौरान जेल में मांझी सरकार की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई थी। 1920 में कोलकाता में महात्मा गांधी से मिले। इसके बाद मांझी को राष्ट्रीय नेताओं का सहयोग मिलना शुरू हो गया। उन्होंने नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आजाद हिंद फौज की तरह वर्दीधारी सैनिकों की फौज तैयार की।

लोग नहीं जानते थे मांझी सरकार के बारे में

जिले के लोगों को अभी भी मांझी सरकार के बारे में जानकारी नहीं है। लोगों को महान क्रांतिकारी के बारे में जानकारी देने जिला मुख्यालय में 6 साल पहले सरदार पटेल मैदान में बड़ी सभा हुई थी। आज भी आदिवासियों को भी मांझी सरकार की त्याग, तपस्या के बारे में जानकारी नहीं है। जबकि जिले में ही उनकी समाधि है।

देशभर में फैले हैं मांझी सरकार के सैनिक

मांझी सरकार के वर्दीधारी सैनिक देशभर में फैले हैं, जो अपनी तरह से देश सेवा में लगे रहते हैं। कंगला मांझी के निधन के बाद उनके आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं। अभी अखिल भारतीय माता दंतेवाड़ी समाज समिति संगठन संचालित हो रहा है। कंगला मांझी को उनके कार्यों से प्रसन्न होकर 1951 में नेहरू ने बिल्ला प्रदान किया था। 1956 में उन्हें दुर्ग जिले की कचहरी में तिरंगा फहराने का गौरव प्राप्त है।

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