बालोद. जिले के डौंडीलोहारा विकास खंड के ग्राम चिलमगोटा में हरेली त्यौहार पर घर घर में गेड़ी बनाए जाने की परंपरा आज भी जीवित है। ग्रामीणों के अलावा स्कूल के शिक्षक भी बच्चों को गेड़ी सिखाते है। स्कूल में गेड़ी दौड़, गिल्ली डंडा खेल के अलावा छत्तीसगढ़ की पारंपरिक व्यंजन ठेठरी, खुरमी, बड़़ा, सोहारी परोसे जाएंगे।
ग्राम चिलमगोटा का गेड़ी नृत्य पूरे छत्तीसगढ़ के अलावा देश के विभिन्न प्रांतों में भी अपनी पहचान बना चुकी है। सन 2010 में गांव के स्कूली बच्चों को शिक्षक सुभाष बेलचन्दन ने बच्चों को जागरूक किया। जिसके बाद बच्चों को गेड़ी में नृत्य करना भी सिखाया। पहली बार स्कूल स्तरीय आयोजन में गेड़ी नृत्य की प्रस्तुति में जीत के बाद लगातार विभिन्न मंचों पर प्रस्तुति की परंपरा आज भी जारी है।
राज्य स्तरीय हरेली तिहार में राजधानी में गेड़ी नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी। सुभाष बेलचंदन ने बताया कि गेड़ी नृत्य भी प्रदेश की संस्कृति में से एक है। इसे बांस गीत करमा लोगगीत के साथ पारंपरिक वाद्य यंत्र गुदुम, डमरू, डफरा के अलावा बेंजों की मधुर ध्वनि के साथ प्रस्तुत की जाती है। हाल ही में इस गांव के 10 कलाकारों ने असम के गुवाहाटी में आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय लोक नृत्य महोत्सव में प्रस्तुति दी। इसके अलावा मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हरेली जगार में भी प्रस्तुति दी जा चुकी है।
बालोद संकुल केंद्र पुरूर के शासकीय प्राथमिक विद्यालय चिटौद में हरेली त्यौहार की पूर्व संध्या पर विभिन्न खेलकूद व सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। शिक्षक एवं कार्यक्रम के संयोजक ईश्वरी कुमार सिन्हा ने बताया कि कि कक्षा पांचवीं की शिक्षिका लिकेश्वरी मार्कंडेय, कामिन साहू के मार्गदर्शन में छात्राओं ने फुगड़ी में हिस्सा लिया। कक्षा दूसरी की शिक्षिका कामिन यादव व राजेश्वरी पंचागम के निर्देश में विद्यार्थियों ने कबड्डी में हुनर दिखाए। कक्षा पांचवी के कामता साहू व कौशल साहू एवं सेवती एवं दिव्या के नेतृत्व में सामुहिक नृत्य प्रस्तुत की।
स्कूल के 186 छात्र-छात्राओं ने प्रांगण में हरेली गीत ‘होगे बियासी नागर धोआगेÓ और ‘आगे-आगे हरेली तिहारÓ में नृत्य प्रस्तुत किया। बच्चों के संग हरेली पर्व के संबंध में सामान्य प्रश्नोत्तरी परिचर्चा भी हुई।
हरेली तिहार के दिन कुलदेवता की पूजा की जाती है। हरेली पर किसान नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि औजारों की साफ-सफाई कर उसे घर के आंगन में रखकर पूजा-अर्चना करेंगे। इस अवसर पर सभी घरों में गुड़ का चीला बनाया जाएगा। हरेली के दिन ज्यादातर लोग कुल देवता और ग्राम देवता की पूजा करेंगे।