बालाघाट

कभी नहीं देखी होगी बांस पर ऐसी कारीगरी-

बांस पर कारीगरी कर सनातन संस्कृति को सहेज रही जिले की महिलाएं
बांस से बना रही दैनिक उपयोग के आधुनिक उपकरण
हस्त कला से महिलाओं को मिलेगी नई पहचान
आत्म निर्भरता की ओर भी बढ़ाएंगी कदम

बालाघाटAug 12, 2024 / 10:30 pm

mukesh yadav

बांस पर कारीगरी कर सनातन संस्कृति को सहेज रही जिले की महिलाएं

बालाघाट. घरेलू कामकाज के बाद बचने वाले समय का सद् उपयोग करने जिले की महिलाएं बांस क्राफ्ट हस्त कला में निपुण हो रहीं है। इस कला में निपुण होकर महिलाएं न सिर्फ सशक्त होने की ओर कदम बढ़ा रही है, बल्कि सनातन संस्कृति को भी सहेजना का काम कर रही है। 25 महिलाओं व 05 पुरुषों के समूह को बांस से डिजाइनर कलाकृतियां और फर्नीचर बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। एक माह के प्रशिक्षण में ही महिलाएं और युवतियां इतने कुशल हो गई कि उनकी बनाई कलाकृतियां और फर्नीचर को देखकर सभी तारीफ करते थक नहीं रहे हैं।
शहर के नर्मदा नगर आनंद मार्ग स्थित एक भवन में यह प्रशिक्षण भारत सरकार की वृहत हस्तशिल्प कलस्टर विकास योजना (सीएचसीडीएस) के तहत दिया जा रहा है। इसके लिए बकायदा हस्त कला में राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त ट्रेनर रमेश कुरले पहुंचे हैं। महिलाओं को कुशल कारीगरी के साथ ही डिजाइनर कलाकृतियां और फर्नीचर बनाने में महिलाओं को निपुण कर रहे हैं। सोमवार को एमपीटीबी के पर्यटन प्रबंधक ने अपने साथियों के साथ महिलाओं के बनाए गए बांस के फर्नीचर और दैनिक उपयोग की वस्तुओं का अवलोकन किया। सभी ने महिलाओं की कुशल कारीगरी की खूब सराहना भी की।
ये महिलाएं ले रही प्रशिक्षण
भूमेश्वरी मंते, सुनीता मेश्राम, दिपीका घरड़े, हीरा बघेल, पुजा पुजारी, भूमि ठाकुर, रितु आसटकर, रितिका सूर्यवंशी, मालती नेताम, सेठिया, लक्ष्मी करारी, दीपिका सोनवाने, मीना राउत, मालती परते, हेमलता परते, हेमलता सोनवाने, मंजू पिपलेवार के अलावा विरेन्द्र ङ्क्षसह ठाकुर, सुशील मेश्राम, कुनाल बघेल, आदि नेवारे, धमेन्द्र नागोसे, उमेश करारे आदि भी प्रशिक्षण ले रहे हैं।
बांस से तैयार किए उपकरण
महिलाओं ने प्रशिक्षण अवधि में यहां बांस से प्रतिमाएं, फूलदान, बांसुरी, टेबल लैंप, लालटेन, पेन स्टैंड सहित साज-सज्जा की चीजें सैकड़ों की संख्या में बनाई है। इसके अलावा बांस से ही कुर्सी, टेबल, डायनिंग टेबल, सोफा सेट सहित अन्य लग्जरी आयटम बनाना भी महिलाएं सीख चुकी है। इनके बनाए सामानों की अभी से डिमांड भी होने लगी है।
पर्यटकों की पहली पसंद बांस शिल्प
ट्रेनर रमेश कुरले ने बताया कि पिछले 25 वर्षो से वे बांस शिल्प का प्रशिक्षण देने का काम कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें राज्य पर पुरस्कृत भी किया जा चुका है। वहीं टीएम एमके यादव ने बताया कि जिले में आने वाले पर्यटक यहां के बांस शिल्प को काफी पसंद करते रहे हैं। बांस शिल्प को नई पहचान मिल सके, इसके लिए भी कोशिशें की जा रही है।
यह भी होता है काम
बांस से बनने वाले साज-सज्जा की वस्तुओं के अलावा अन्य तरह के काम भी शहर में किए जाने हैं। इस बारे में जानकारी देते हुए बांस शिल्प के ट्रेनर रमेश ुकुरले ने बताया कि जिले के कलाकार बांस से रिसार्ट में इंटीरियर का भी काम कर सकते हैं। बांस से हाट तैयार करना और होटलों के फर्नीचर तैयार करने का काम भी प्रशिक्ष के बाद ये महिला कलाकार कर सकेंगी।
सशक्त होगी महिलाएं
जानकारी के अनुसार जिले में बांस (बाम्बु) बहुतायत में पाया जाता है। ऐसे में इससे कलाकृतियां और फर्नीचर बनाए जाने से बहुत कम लागत में अच्छे उपकरण व दैनिक उपयोग की वस्तुतिए जिले में ही मुहैया हो पाएगी। इस कला को पूर्ण रूप से सीखने के बाद महिलाएं न सिर्फ आर्थिक रूप से सशक्त होगी। बल्कि हस्त कला के क्षेत्र में इन महिलाओं को एक नई पहचान भी मिलेगी। वे अपने पतियों के कांधे से कांधा मिलाकर परिवार के लालन पालन की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा पाएंगी। कुरले ने बताया कि शासन की योजना के तहत महिलाओं को लोन सुविधा और रोजगार स्थापित करने का प्रावधान भी है।
वर्सन
करीब 30 महिलाओं को बांस हस्त कला का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बहुत कम समय में ही महिलाएं इस कला में पारंगत हो रही है। जिन्हें स्वयं का रोजगार स्थापित करने भी सहयोग किया जाएगा। इस कला को सीखने से महिलाएं सशक्त होगी वहीं उन्हें एक नई पहचान भी मिलेगी।
रमेश कुरले, मास्टर ट्रेनर

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