बालाघाट

128 साल का हो गया हमारा जिला, 12 घाटों से घिरा होने के कारण नाम पड़ा ‘बालाघाट’

balaghat history in hindi- कई इतिहास अपने में समेटे मध्यप्रदेश का बालाघाट 128 साल का हो गया…।

बालाघाटDec 31, 2022 / 06:59 pm

Manish Gite

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बालाघाट। सतपुड़ा की सुरम्य वादियों से घिरा और वैनगांग नदी की गोद में बसे बालाघाट जिले को 31 दिसंबर को 127 वर्ष पूरे हो गए। वहीं हमारा जिला 128 वें वर्ष में प्रवेश कर गया। एक बार फिर जिले के स्थापना दिवस को मनाया जा रहा है। ऐसे में इतिहास के जानकार शिक्षा और विकास के क्षेत्र में पुरातन से लेकर अब तक के समय को याद करते हैं, तो सामने आता है कि हमें स्वतंत्र भारत से ज्यादा कुछ नहीं मिला। समय बीतता गया और विकास के वादे कागजों तक रह गए। इसलिए आज हमारा जिला वन और खनिज सम्पदा होने के बाद भी पिछड़ों के सूची में अव्वल होने को आमदा है।

 

20 फरवरी 1975 में हुए थाना कांड की वजह से बालाघाट को देश के नक्शे में जाना जाने लगा। इसके बाद सन् 1983-84 में मौत की ट्रेन के नाम से पहचाने जाने वाला नाहरा पुल कांड जिसमें ट्रेन की चार बोगी पुल से नदी में गिर जाने के कारण सौ से अधिक लोग काल के गाल में समा गए। सन् 1992 से नक्सलवाद के कारण हत्या, घटनओं के कारण बालाघाट चर्चा में रहता है। 7 जून 2017 को पटाखा फैक्ट्री विस्फोट कांड जिसमें 27 लोग बारूद की आग में जिंदा जल गए। इस मामले ने जिले का नाम एक फिर देश की सुर्खियों में लाया। वहीं वर्ष 2018 के 21 नवंबर को मनी लीजेंड अनिल कांकरिया की दिन दहाड़े हत्या कर दी गई। यह मामला भी खूब सुर्खियों में रहा। वहीं 2020-2021 में भी जिला नक्सलियों की घटनाओं से खूब सुर्खियों में रहा। वर्तमान वर्ष 2021-22 में करोड़ों रूपयों के डबल मनी मामला, पुलिस का तीन इनामी नक्सलियों को मार गिराना प्रमुख घटनाओं में शामिल हैं।

 

ब्रिटिश शासन काल के डिप्टी कमिश्नर कर्नल ब्लूम फिल्ड को बालाघाट का जनक कहा जाता है। कर्नल ने इस बात को भाप लिया कि बालाघाट को जिला बनाए जाने से आसपास के क्षेत्रों पर प्रशासनिक नियंत्रण रखा जा सकता है। इस कारण इसे जिला बनाए जाने की योजना रखी गई। सीपी एण्ड बरार सेन्ट्रल प्रोविनसेस एण्ड बरार के अंतर्गत भंडारा जिला में था। जिसकी राजधानी नागपुर हुआ करती थी। उस समय 31 दिसंबर 1895 में बालाघाट को जिला बनाया गया। बैहर, लांजी, वारासिवनी तीन तहसील बनाई गई। अवश्यकता के अनुसार तहसीलों का विस्तार किया गया। वर्ष 1956 में स्वंतत्र मध्यप्रदेश की स्थापना के समय बालाघाट मप्र में शामिल हुआ। जानकारों के अनुसार 12 घाटों से घिरे होने के कारण इसका नाम 12 घाट रखा जाना था। नामकरण के लिए यह कलकत्ता गया था, जहां पर उच्चारण की गलती होने के कारण 12 घाट के स्थान पर बालाघाट नाम हो गया। सुधार नहीं होने के कारण 12 घाट बालाघाट बन गया।

 

इतिहास की बातें

सिख समाज के जानकरों के अनुसार इनके पहले गुरू श्री गुरुनानक देव जी 15 सौ से 1550 ई के बीच बालाघाट होकर गुजरे थे। इस बात का प्रमाण उनके विश्व भ्रमण के नक्शे में अंकित है। स्वतंत्रता संग्राम की जानकारी रखने वालों के अनुसार गांधीजी अछूत समानता अधिकार आंदोलन के लिए धन एकत्रित करने के लिए आमगांव, कारंजा के रास्ते रजेगांव होते हुए बालाघाट से होकर गुजरे थे। इसके अलावा क्विंदती यह भी है कि रामपायली में वनवास के दौरान भगवान रामचंद्र पत्नी सीता और लक्ष्मण के साथ आए थे। जिसके कुछ प्रमाण भी मिलते हैं।

 

ऐसे बना बालाघाट

जिले के तीन प्रमुख व्यक्ति के रूप में बालाघाट के जनक कर्नल ब्लूम फिल्ड मानेक मेरवान जी मुलान जिनको दीवान बहदुर एमएम मुलना साहाब के नाम से जाना जाता है। इनके द्वारा दिए गए दान पर बालाघाट का स्टेडियम, पॉलीटेक्निक कॉलेज, पुराना फिल्टर प्लांट आज भी लोगों को सुविधा प्रदान कर रहा है। हालांकि नगर पालिका ने नया फिल्टर प्लांट बनवाया है। तीसरे व्यक्ति जटाशंकर त्रिवेदी जिनकी स्मृति में इनके परिजन ने कॉलेज भवन शासन को दान दिया जो आज जिले का सबसे बड़ा कॉलेज हैं।

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