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सपा-बसपा गठबंधन में जाएंगे जयंत- वैसे जयंत चौधरी ने काफी सोच विचार कर गठबंधन के साथ जाने का फैसला लिया है। बात करें पिछले लोकसभा चुनाव की तो गठबंधन में लोकदल को भारी वोट मिलने का अनुमान लगाया जा सकता है। वही कांग्रेस के साथ रालोद का गठबंधक बीजेपी को बढत देता नजर आ रहा है।
सपा-बसपा गठबंधन में जाएंगे जयंत- वैसे जयंत चौधरी ने काफी सोच विचार कर गठबंधन के साथ जाने का फैसला लिया है। बात करें पिछले लोकसभा चुनाव की तो गठबंधन में लोकदल को भारी वोट मिलने का अनुमान लगाया जा सकता है। वही कांग्रेस के साथ रालोद का गठबंधक बीजेपी को बढत देता नजर आ रहा है।
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विरासत की सीट बचाने की चुनौती जहां एक ओर मुजफ्फरनगर से अजीत सिंह, बागपत से जयंत चौधरी चुनाव लड़ना चाहते हैं, वहीं बागपत लोकसभा चुनाव में अजीत सिंह के सामने अपनी विरासत बचाने की भी कोशिश है। यही कारण है कि अभी तक उन्होंने गठबंधन में चुनाव लड़ने का अपना विकल्प खुला रखा है। सपा बसपा गठबंधन में उनको फायदा मिलता दिख रहा है। लेकिन मनचाही सीट न मिलना गठबधन में शामिल होने के ऐलान में देरी कर रहा है।
विरासत की सीट बचाने की चुनौती जहां एक ओर मुजफ्फरनगर से अजीत सिंह, बागपत से जयंत चौधरी चुनाव लड़ना चाहते हैं, वहीं बागपत लोकसभा चुनाव में अजीत सिंह के सामने अपनी विरासत बचाने की भी कोशिश है। यही कारण है कि अभी तक उन्होंने गठबंधन में चुनाव लड़ने का अपना विकल्प खुला रखा है। सपा बसपा गठबंधन में उनको फायदा मिलता दिख रहा है। लेकिन मनचाही सीट न मिलना गठबधन में शामिल होने के ऐलान में देरी कर रहा है।
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बागपत में अभी भी है रालोद का दबदबा चूंकि अजित सिह हमेशा से सत्ता के साथ समझौता करने के लिए बदनाम रहे है, इसलिए अखिलेश यादव और मायावती उनको कोई ज्यादा सीट देना नहीं चाहते है। राजनीतिक विशलेषक सतवीर राठी के अनुसार अजीत सिंह आज भी पश्चिम में अपना वजूद रखते है, यही कारण है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में हिन्दू-मुस्लिम चुनाव और मोदी की आंधी होने के बाद भी अजित सिंह ने 1,99,516 लाख वोट हांसिल किये थे। जबकि विजेता चैधरी सत्यपाल सिंह को चार लाख 23 हजार वोट मिले और इस चुनाव में कई पार्टियों को पानी तक नसीब नहीं हुआ।
बागपत में अभी भी है रालोद का दबदबा चूंकि अजित सिह हमेशा से सत्ता के साथ समझौता करने के लिए बदनाम रहे है, इसलिए अखिलेश यादव और मायावती उनको कोई ज्यादा सीट देना नहीं चाहते है। राजनीतिक विशलेषक सतवीर राठी के अनुसार अजीत सिंह आज भी पश्चिम में अपना वजूद रखते है, यही कारण है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में हिन्दू-मुस्लिम चुनाव और मोदी की आंधी होने के बाद भी अजित सिंह ने 1,99,516 लाख वोट हांसिल किये थे। जबकि विजेता चैधरी सत्यपाल सिंह को चार लाख 23 हजार वोट मिले और इस चुनाव में कई पार्टियों को पानी तक नसीब नहीं हुआ।
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गठबंधन में मिल सकता है फायदा पिछले 2009 में भी अजित सिह को दो लाख से अधिक वोट मिलने पर जीत हांसिल हुई थी। जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि दो लाख वोट उनकी जेब में है। लेकिन उनके साथ और वोट कैसे जोडे़ जाये यही कारण उनको परेशान किये जा रहा है। बसपा सपा गठबधन में अगर उनको जगह मिलती है तो बागपत से लड़ने पर उनकी जीत कोई नहीं रोक सकता। क्योकि सपा बसपा गठबंधन भी तीन लाख के करीब वोट बटोरने में कामयाबी हांसिल कर सकते है। बागपत में इस बार नौ लाख वोटर वोट करने जा रहे हैं। जिसके चलते तिकड़ी का चुनाव ढाई लाख वोट पर हार जीत का फैसला कर देगा।
गठबंधन में मिल सकता है फायदा पिछले 2009 में भी अजित सिह को दो लाख से अधिक वोट मिलने पर जीत हांसिल हुई थी। जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि दो लाख वोट उनकी जेब में है। लेकिन उनके साथ और वोट कैसे जोडे़ जाये यही कारण उनको परेशान किये जा रहा है। बसपा सपा गठबधन में अगर उनको जगह मिलती है तो बागपत से लड़ने पर उनकी जीत कोई नहीं रोक सकता। क्योकि सपा बसपा गठबंधन भी तीन लाख के करीब वोट बटोरने में कामयाबी हांसिल कर सकते है। बागपत में इस बार नौ लाख वोटर वोट करने जा रहे हैं। जिसके चलते तिकड़ी का चुनाव ढाई लाख वोट पर हार जीत का फैसला कर देगा।