बताया जाता है कि हिमालय पर तपस्या करके रावण ने देवी मंशा को प्रसन्न कर लिया था। इसके बाद रावण ने देवी मंशा से उनके लंका में स्थापित होने का वरदान मांगा। इस पर देवी ने शर्त रखी कि मैं मूर्ति के रूप में तुम्हारे कंधों पर सवार होकर लंका तक चलूंगी। यदि रास्ते में मूर्ति का भूमि से स्पर्श हो गया तो मैं वहीं प्रतिष्ठित हो जाऊंगी। रास्ते में बागपत के बड़ागांव के पास रावण को लघुशंका इच्छा हुई तो उसने यहां ग्वाले को मूर्ति को संभालने के लिए दे दी। असल में ग्वाला भगवान विष्णु थे। उन्होंने मूर्ति को जमीन पर रख दिया। रावण लौटा तो मूर्ति को उठाने का प्रयास किया।
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रावण के लाख प्रयासों के बाद देवी की मूर्ति भूमि से नहीं उठ सकी। इसके बाद रावण मां को प्रणाम कर लंका प्रस्थान कर गया। कहा जाता है कि देवी मां बड़ागांव में प्राचीन मंशा देवी मंदिर में विराजमान हैं। कहा जाता है तभी से बडागांव का नाम रावण पड़ गया। मंशा देवी मंदिर में विष्णु की प्राचीन मूर्ति मौजूद है। जिसे इतिहासकार आठवीं शताब्दी की बताते हैं। ग्राम प्रधान दिनेश त्यागी का कहना है कि भगवान राम में ग्रामीणों की पूरी आस्था है। लेकिन महाज्ञानी रावण ग्रामीणों के दिल में बसे हैं। मंशा देवी मंदिर परिसर में उनके नाम से रावण कुंड है। गांव में ना तो रामलीला होती है और यहां पर रावण दहन भी नहीं होता।
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