पहला- निकाय चुनाव में पार्टी की सफलते के उत्साह को 2024 तक ले जाना
हाल ही में खत्म हुए निकाय चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल का प्रदर्शन अच्छा रहा है। 2017 में बेहद खराब हालत में रही RLD को इस बार 20 से ज्यादा सीटों पर सफलता मिली है। खासतौर से बागपत, बिजनौर, मुजफ्फरनगर में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है। इसके बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह है। ऐसे में जयंत लगातार पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच रहकर अब इस उत्साह को 2024 तक ले जाना चाहते हैं।
हाल ही में खत्म हुए निकाय चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल का प्रदर्शन अच्छा रहा है। 2017 में बेहद खराब हालत में रही RLD को इस बार 20 से ज्यादा सीटों पर सफलता मिली है। खासतौर से बागपत, बिजनौर, मुजफ्फरनगर में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है। इसके बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह है। ऐसे में जयंत लगातार पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच रहकर अब इस उत्साह को 2024 तक ले जाना चाहते हैं।
दूसरा- सीधे लोगों से जुड़ने का खतौली फॉर्मूला जारी रखना
जयंत चौधरी अमूमन बहुत बड़ी सभाएं नहीं करते हैं। वो ये जानते भी हैं कि दूसरे नेताओं की तरह की बड़ी महंगी रैलियां उनकी पार्टी के लिए संभव नहीं हैं। खासतौर से दिसंबर में खतौली में हुए उपचुनाव में उन्होंने गली-गली घूमकर प्रचार किया था और सीट भाजपा से जीत ली थी। ऐसे में वो फिर से इसी फॉर्मूले पर चलते हुए गांव-गांव जाकर लोगों से जुड़ना चाहते हैं।
जयंत चौधरी अमूमन बहुत बड़ी सभाएं नहीं करते हैं। वो ये जानते भी हैं कि दूसरे नेताओं की तरह की बड़ी महंगी रैलियां उनकी पार्टी के लिए संभव नहीं हैं। खासतौर से दिसंबर में खतौली में हुए उपचुनाव में उन्होंने गली-गली घूमकर प्रचार किया था और सीट भाजपा से जीत ली थी। ऐसे में वो फिर से इसी फॉर्मूले पर चलते हुए गांव-गांव जाकर लोगों से जुड़ना चाहते हैं।
तीसरा- चौधरी चरण सिंह, अजीत सिंह से लोगों के जुड़ाव को याद करना
जयंत के दादा पूर्व पीएम चरण सिंह और पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह का पश्चिम यूपी से जुड़ाव सभी जानते हैं। चरण सिंह के नाम पर आज भी जाटों और दूसरे खेती किसानी से जुड़े वर्ग भावुक दिखते हैं। ऐसे में जयंत की कोशिश है कि इस जुड़ाव को ताजा किया जाए। जिससे भाजपा की ओर गए उनके अपने जाति के लोगों को वापस लाया जा सके। ऐसे में जब वो गांव में जाकर लोगों के बीच बैठेंगे तो सबसे ज्यादा बातें उनके पिता और दादा की ही होंगी। जो उनसे लोगों को जोड़ने में मदद करेंगी।
जयंत के दादा पूर्व पीएम चरण सिंह और पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह का पश्चिम यूपी से जुड़ाव सभी जानते हैं। चरण सिंह के नाम पर आज भी जाटों और दूसरे खेती किसानी से जुड़े वर्ग भावुक दिखते हैं। ऐसे में जयंत की कोशिश है कि इस जुड़ाव को ताजा किया जाए। जिससे भाजपा की ओर गए उनके अपने जाति के लोगों को वापस लाया जा सके। ऐसे में जब वो गांव में जाकर लोगों के बीच बैठेंगे तो सबसे ज्यादा बातें उनके पिता और दादा की ही होंगी। जो उनसे लोगों को जोड़ने में मदद करेंगी।
चौथा- अकेले चलने के लिए भी तैयार रहना
जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी 2018 से सपा के साथ गठबंधन में है। उन्होंने 2019 का चुनाव सपा और बसपा के साथ मिलकर लड़ा। इसके बाद 2022 का चुनाव सपा के साथ लड़ा। 2019 का चुनाव हो, 2022 का या हालिया निकाय चुनाव। आरएलडी का सीटों को लेकर गठबंधन के साथियों से टकराव सामने आता रहा है। 2024 में सपा उनके साथ होगी, इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता। ऐसे में वो पार्टी की जमीन इतनी मजबूत कर लेना चाहते हैं कि अगर अकेले दम पर भी चुनाव में जाना पड़े तो मुकाबले से बाहर ना हों। शायद इसीलिए उन्होंने समरसता अभियान के तहत ये लंबा कैंपेन शुरू किया है।
पांचवा- BJP का मुकाबला करना है तो लगातार जमीन पर रहना ही होगा
राज्यसभा के सांसद जंयत चौधरी और उनकी पार्टी RLD पश्चिम यूपी में सीधे बीजेपी के सामने है। 2019 में उनकी पार्टी ने जिन सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ा था। वो तीनों यानी बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा वेस्ट में आती हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी आरएलडी ने शामली, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत में भाजपा को तगड़ी टक्कर दी थी। शामली और मुजफ्फरनगर की तो 9 में से 6 सीट रालोद के पास हैं और 2 पर सपा काबिज है। सिर्फ एक सीट भाजपा के पास है।
बीजेपी पश्चिम यूपी में अभी से 2024 के चुनाव में जुट गई है। ऐसे में जयंत भी जानते हैं कि बीजेपी से लड़ना है तो 24 घंटे एक्शन में रहना होगा। ऐसे में उन्होंने 24 घंटे जमीन पर रहने की ठान ली है। ताकि 2024 में भाजपा का मुकाबला किया जा सके।
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