इस मामले की सुनवा बागपत के सिविल जज शिवम द्विवेदी ने की है। मेरठ के सरधना अदालत में बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने वक्फ बोर्ड के पदाधिकारी की हैसियत से वाद दायर कराया था, जिसमें उन्होंने लाक्षागृह के गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया था। मुकीम ने अपने याचिका में लाक्षागृह पर वक्फ बोर्ड के मालिकाना हक की दावेदारी की थी। जो कि टीले पर शेख बदरुद्दीन की मजार और बड़े कब्रिस्तान की जमीन थी।
कृष्णदत्त महाराज और मुकीम खान दोनों की हो चुकी है मौत
मुस्लिम पक्ष ने जब इस मामले में अपील दायर की थी तो उन्होंने प्रतिवादी कृष्णदत्त महाराज को बाहरी व्यक्ति बताया था। मुस्लिम पक्ष की ओर से कृष्णदत्त महाराज के ऊपर आरोप लगाते हुए कहा था कि वह मुस्लिम कब्रिस्तान को खत्म करके हिंदुओं का तीर्थ बनाना चाहते हैं। हिंदू पक्ष की तरफ से साक्ष्य पेश करने वाले कृष्णदत्त महाराज और मुस्लिम पक्ष से वाद दायर करने वाले मुकीम खान दोनों की मृत्यु हो चुकी है। इनकी जगह दूसरे लोग ही कोर्ट में पैरवी कर रहे थे। मुस्लिम पक्ष ने यह भी दावा किया था कि उनके शेख बदरुद्दीन की यहां पर मजार है, जिसे हटा दिया गया था।
मुस्लिम पक्ष ने जब इस मामले में अपील दायर की थी तो उन्होंने प्रतिवादी कृष्णदत्त महाराज को बाहरी व्यक्ति बताया था। मुस्लिम पक्ष की ओर से कृष्णदत्त महाराज के ऊपर आरोप लगाते हुए कहा था कि वह मुस्लिम कब्रिस्तान को खत्म करके हिंदुओं का तीर्थ बनाना चाहते हैं। हिंदू पक्ष की तरफ से साक्ष्य पेश करने वाले कृष्णदत्त महाराज और मुस्लिम पक्ष से वाद दायर करने वाले मुकीम खान दोनों की मृत्यु हो चुकी है। इनकी जगह दूसरे लोग ही कोर्ट में पैरवी कर रहे थे। मुस्लिम पक्ष ने यह भी दावा किया था कि उनके शेख बदरुद्दीन की यहां पर मजार है, जिसे हटा दिया गया था।
क्या है पूरा विवाद?
लाक्षागृह और मजार-कब्रिस्तान केस में कुल 108 बीघा जमीन है, जो विवादित है। अब कोर्ट के फैसले के बाद इस जमीन पर मालिकाना हक हिंदू पक्ष का होगा। यहां पर एक पांडव कालीन सुरंग भी मौजूद है, जिसको लेकर दावा किया जाता है कि इसी सुरंग के जरिए पांडव लाक्षागृह से बचकर निकले थे। इस मामले में इतिहासकारों का कहना है कि इस जमीन पर जितनी भी खुदाई की गई है, वहां हजारों साल पुराने साक्ष्य मिले हैं जो कि हिंदू सभ्यता के ज्यादा करीब हैं।
लाक्षागृह और मजार-कब्रिस्तान केस में कुल 108 बीघा जमीन है, जो विवादित है। अब कोर्ट के फैसले के बाद इस जमीन पर मालिकाना हक हिंदू पक्ष का होगा। यहां पर एक पांडव कालीन सुरंग भी मौजूद है, जिसको लेकर दावा किया जाता है कि इसी सुरंग के जरिए पांडव लाक्षागृह से बचकर निकले थे। इस मामले में इतिहासकारों का कहना है कि इस जमीन पर जितनी भी खुदाई की गई है, वहां हजारों साल पुराने साक्ष्य मिले हैं जो कि हिंदू सभ्यता के ज्यादा करीब हैं।