जब लाही/सरसों के प्रक्षेत्रों में 10-20 प्रतिशत फूल आने लगें तो मौनवंशों को तुरंत उन क्षेत्रों में व्यवस्थित कर देना चाहिए। यह बाते जिला उद्यान अधिकारी बागपत दिनेश कुमार अरुण ने बताई। उन्होंने बताया कि किसानों को मधुमक्खियां लखपति बना सकती हैं। लेकिन किसानों को मौन पालन की जानकारी भी होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि बिना जानकारी के मौनपालक करना कोई समझदारी नहीं है।
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रखें इन बातों का ध्यान, तो मिलेगा भरपूर लाभ मधुमक्खी पालन कार्यक्रम को सफलतापूर्वक कार्यान्वित कराए जाने हेतु जिला उद्यान अधिकारी ने निम्न सुझाव देते हैं 1- स्थानाभाव होने पर यथा आवश्यक मौमी छत्ताधार मौनवंशों को सुलभ करा दें, तथा काली / पीली सरसों में 10 प्रतिशत फूल खिल जाने पर मौनवंशों को उन क्षेत्रों में अवश्य कर दें। 2- मौन गृहों पर सफेद पेन्टिंग करा कर इन पर हरे रंग से मौनालयवार मौनवंश संख्या अंकित कर दें ताकि बाक्स अनुसार शहद उत्पादन आकलित हो सके। 3- मौनगृह के तलपट एवं संबन्धित उपकरणों को पोटेशियम परमैंगनेट / लाल दवा से माह में एक बार धुलाई करें।
4- अधिक सर्दी से मौनवंशों की सुरक्षा के लिए प्रवेश द्वार छोटा कर दें तथा टाप कवर के नीचे जूट का बोरा रख कर मौनवंशों के गृह का तापक्रम नियंत्रित रखें। मौन गृहों की दरारों को बंद कर ठंडी हवाओं से बचाना चाहिए।
5- माइट के प्रकोप से बचने के लिए मौनगृह के तलपट की साफ सफाई समय-समय पर करते रहे तथा खाली मौनगृहों को धूप में सुखा कर मौन गृहों को बदलते रहे एवं बाटमबोर्ड पर सल्फर की डस्टिंग भी समय-समय पर करते रहना चाहिए।
6- पिछले वर्ष के अधिक शहद उत्पादन करने वाले सशक्त मौनवंशों को मातृ मौनवंशों की श्रेणी में रखते हुए इनसे मौनवंशों का संवर्धन सुनिश्चित करें। विभाजित मौनवंशों में गुणवत्तायुक्त नई रानी देने हेतु पूर्व से तैयार की गई रानी को क्वीन केज के माध्यम से विभाजित मौनवंश में प्रवेश कराया जाय ताकि कम समय में सशक्त मौनवंश का संवर्धन सम्भव हो सके।
7- प्रदर्शन ( मधु उत्पादक) मौनालय के ऐसे मौनवंश जिन्हें मातृ मौनवंश की श्रेणी में रखा गया है, उसकी प्रतिपूर्ति मातृ मौनालय के मौनवंश से कर लिया जाय। मौमी पतिंगे की गिडारों की रोकथाम के उपाय
– मौनवंशों को सुदृढ़ / सशक्त बनाए रखें। मौनगृहों की दरारों को बंद रखें। खाली छत्तों को मौनगृहों से निकाल कर पालीथीन में पैक करके रखें। -प्रभावित छत्तों को धूप में रख कर गिडारों को हाथ से मारा जा सकता है।
मौनवंशों को परजीवी, अष्टपदी माइट का प्रकोप – बैरोवा एवं ट्रापलीलेप्स क्लेरी माइट : यह दोनो प्रकार के माइट मौनवंशों के लावा, प्यूपा एवं वयस्क मौनों के शरीर से रक्त ( हीमोलिम्फ) को चूसते हैं, जिससे लारवा, प्यूपा एवं वयस्क मौनें मर जाती हैं। बैरोवा माइट से प्रभावित मौनें विकलांग एवं अविकसित रह जाती हैं, जो अवतारक पट (वाटम बोर्ड) के नीचे गिरी हुई मिलती हैं।
ट्रापलीलेप्स क्लेरी माइट से प्रभावित मौनों के पंख पैर अविकसित एवं शरीर कमजोर हो जाता है तथा मौनें मौनगृह से गिर कर दूर रेंग कर जाती हुई दिखाई देती हैं। बचाव हेतु सावधानियां एवं उपचार
1- प्रभावित मौनवंशों में सल्फर पाउडर 2 ग्राम प्रति फ्रेम की दर से साप्ताहिक अंतराल पर चार बार बुरकाव करना चाहिए। 2- फारमिक एसिड 85 प्रतिशत सांद्रता की 3-5 मिली मात्रा को एक दिन के अंतराल पर एक शीशी में लेकर रूई की बत्ती बना कर मौनगृह के तलपट में शाम के समय रखें। यह उपचार पांच बार किया जाय तथा प्रत्येक दिन दवा को बदलते रहे।
3- नीम का सूखा छिल्का नीम की सूखी पत्ती को किसी टीन के बर्तन में रखकर मौनगृह के तल पट पर धुआं करें। 4- थाइमोल एक ग्राम प्रति फ्रेम की दर से बारीक पीस कर कपड़े से छानकर मौनवंशों को उपलब्ध कराना चाहिए। इसके अलावा एकरीन रोग जिसमें मधुमक्खियां रेंगने लगती हैं तथा उनको पेचिश जैसी समस्या होती है, उसके बचाव के लिए फार्मिक एसिड का फ्यूमिगेशन अथवा आक्सेलिक एसिड के तीन फीसद सांद्रता का पांच मिली लीटर प्रति ब्रूड चेंबर की दर से आठ दिन के अंतराल पर तीन छिड़काव करें।