आजमगढ़. स्थानीय स्टेशन पर जब भी पहुंचिए यात्री किसी न किसी समस्या से दो-चार होते दिखेंगे। गर्मी में तेज लू के थपेड़ तो जाड़ें में ठंड से बचने के लिए इन्हें मशक्कत करनी पड़ती है। स्टेशन पर भोजन तो दूर नाश्ते के लिए भी दर-बदर भटकना पड़ता है। जबकि यहां मेन्यु आधारित कैंटीन 2009 से स्वीकृत है। प्रतीक्षालय में बारहों महीने ताला लटका रहता है। उस समय स्थिति और भी बिगड़ जाती है जब बिजली नहीं रहती। विभाग जनरेटर चलाता नहीं और यात्री अंधेरे में भटकते है। विभागीय अधिकारी इन मुद्दों पर न तो कुछ बोलने के लिए तैयार है और ना ही समस्याओं के समाधान के लिए कोई प्रयास कर रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि रेलवे के पास निर्माण के लिए भूमि नहीं है। स्टेशन के आसपास कई एकड़ भूमि खाली पड़ी है। कैंटीन के लिए भवन भी बन गया है लेकिन कैंटीन चालू नहीं करायी जा रही है। पार्क आदि की कल्पना भी बेमानी है। यही नहीं फ्रिजर में पानी न हो तो पीने के लिए शुद्ध पानी भी नसीब नहीं होगा। वैसे भी यहां लगे फ्रिजर की हालत बदतर हो चुकी है। एक टोटी महीनों से टूटी है लेकिन मरम्मत नहीं करायी जा रही है। अब बात करें जनरल सप्लाई की तो प्लेटफार्म पर जगह-जगह टोटी लगाई गयी है। इनकी कुल संख्या दो दर्जन से अधिक है इसमें पानी भी आता है लेकिन इसका पानी पीने वाला कभी भी अस्पताल पहुंच सकता है। कारण कि ट्यूबेल से टंकी तक आने वाली पाइप में कई जगह लीकेज है। कर्मचारी आवास के पास ही गंदे पानी के पास लीकेज होने से बिजली कटने की स्थित में गंदा पानी रिसकर सप्लाई होता है। बात यहीं खत्म नहीं होती आये दिन की कहानी है कि कैफियात समय से नहीं आ पाती। ऐसी स्थिति में गोदान एक्सप्रेस को प्लेटफार्म 2 पर लगाया जाता है। प्लेटफार्म 2 आज भी अपूर्ण है। वृद्ध न तो ट्रेन पर चढ़ सकता है और ना ही उतर सकता है। पूछताछ केंद्र को प्लेटफार्म से हटाकर स्टेशन से बाहर कर दिया गया है इससे परेशानी और बढ़ गयी है। अगर किसी यात्री को कोई जानकारी चाहिए तो उसे सामान प्लेटफार्म पर छोड़कर वहां तक जाना पड़ता है। इस बीच सामान उचक्के ले जाय या फिर बंदर। किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं है। सब मिलाकर इस स्टेशन से एक बार यात्रा करने पर दिल से कराह ही निकलती है कि दुबारा नौबत न आये। स्थानीय रेलवे स्टेशन पर जेनरेटर की व्यवस्था है। बड़े अधिकारी आते हैं तो बिजली न रहने की स्थिति में जेनरेटर चलाने का निर्देश भी देते हैं। जब तक वे जिले में होते हैं तब तक इस दिशा निर्देश का अक्षरश: पालन होता है लेकिन अधिकारी मुख्यालय छोड़ा नहीं कि यहां तैनात लोग अपने ढर्रे पर आ जाते हैं। जब तक बिजली रहती है स्टेशन लाइट से गुलजार रहता है। इस दौरान बंदरों से खतरा भी कम रहता है। दोपहर को जब विद्युत कटौती होती है तो लोग उमस से जूझते हैं। रात्रि में बिजली कटती है इस दौरान भी अधिकारी जेनरेटर चालू नहीं कराते। कहीं कोई फाल्ट हो गया तो पूरी रात के लिए बिजली गुल हो जाती है। यात्री अंधेरे में प्लेटफार्म पर पड़े रहते हैं। सामान की सुरक्षा के लिए यात्री सो भी नहीं सकते। स्टेशन अधीक्षक कहते हैं कि जितना तेल का खर्च मिलता है उतने में काम चलाया जाता है। वैसे भी ट्रेन लेट न हो तो रात को यात्रियों की बहुत अधिक भीड़ नहीं होती। क्षेत्र के रुद्र प्रताप अस्थाना कहते हैं कि रेलवे को मण्डल में सबसे अधिक आय आजमगढ़ रेलवे स्टेशन से होती है लेकिन यहां की बुनियादी सुविधाएं जीर्ण-शीर्ण हैं। समाजसेवी डॉ. शैलेंद्र सिंह व उमा जायसवाल कहती हैं कि अब तक सिर्फ घोषणाएं हुई हैं। काम कुछ नहीं हुआ है। लीलापुर निवासी कृपाशंकर पाठक कहते हैं कि स्थानीय रेलवे स्टेशन पर आटोरिक्शा, तांगा, ठेला, रिक्शा, टैक्सी आदि के लिए पड़ाव नहीं है। सड़क और पटरी बुरी तरह क्षतिग्रस्त है। कोलकाता के लिए कोई ट्रेन नहीं है। सब मिलाकर यहां हालात बद से बदतर है।