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आजमगढ़

UP Municipal Elections 2022: बिना लड़े ही मैदान से बाहर हुए कई पहलवान, लाखों रुपया डूबा

टिकट की दावेदारी में विभिन्न दलों के दो दर्जन दावेदार पोस्टर, बैनर व दवा-इलाज में लाखों रुपयेे खर्च कर चुके है। अब आरक्षण के कारण वे दौड़ से बाहर हो गए।

आजमगढ़Dec 06, 2022 / 07:28 pm

Ranvijay Singh

प्रतीकात्मक फोटो

प्रतीकात्मक फोटो

नगर निकाय चुनाव 2022 में आरक्षण की स्थिति साफ होने के बाद घमासान बढ़ गई है। आजमगढ़ सीट अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित की गई है। इससे सवर्ण और दलित दावेदार मैदान से बाहर हो गए हैं। यह ऐसे दावेदार है जो अपने को बेहतर साबित करने के लिए लाखों रुपये खर्च कर चुके हैं।


वर्ष 2017 में अनारक्षित थी आजमगढ़ सीट
आजमगढ़ नगरपालिका सीट वर्ष 2017 के चुनाव में अनारक्षित थी। शीला श्रीवास्तव अध्यक्ष चुनी गई थी। इस चुनाव में वे सपा से टिकट की दावेदारी कर रही थी। शीला खुद या अपने पुत्र प्रणीत श्रीवास्तव हनी के लिए टिकट चाहती थी। पोस्टर बैनर पर इन्होंने भारी भरकम खर्च किया था। अब आरक्षण के बाद वे रेस से बाहर हो चुकी है। अब उनके पुत्र को भी पांच साल इंतजार करना होगा।

भारद ने पांच साल की तैयारी
पिछले चुनाव में भारत रक्षा दल के प्रत्याशी हरिकेश विक्रम श्रीवास्तव ने 9 हजार वोट हासिल किया था। हरिकेश मामूली अंतर से चुनाव हार गए थे। वे पिछले पांच साल से लगातार तैयारी कर रहे थे। बीआरडी के कार्यकर्ता नाला सफाई से लेकर फागिंग तक कर मुहल्लों में अपनी पैठ मजबूत कर चुके थे। यहीं नहीं संगठन पांच रुपये में भर पेट पूड़ी सब्जी की कैंटीन भी लंबे समय से लगा रहा था। इस संगठन से जनता का सीधा जुड़ाव है। इस बार बड़ी संख्या में लोग हरिकेश को सबसे मजबूत प्रत्याशी मान रहे थे। अब वे भी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।

सुधीर सिंह पपलू की तैयारी भी बेकार
बच्चा बाबू की गिनती आजमगढ़ ही नहीं पूर्वांचल के बड़े नेताओं में होती थी। उनके छोटे पुत्र सुधीर सिंह पपलू पिछला चुनाव बसपा से लड़े थे। उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में पपलू बसपा के साथ ही अंदरखाने बीजेपी में भी लगे हुए थे कि टिकट मिल जाए। अब पपलू भी बिना लड़े मैदान से बाहर हो चुके हैं।

बीजेपी नेताओं को लगा सबसे अधिक झटका
बीजेपी के सवर्ण टिकट दावेदारों की बात करें तो जिला महामंत्री सूरज श्रीवास्तव, अजय सिंह, संतोष श्रीवास्तव, डा. भक्तवत्सल टिकट के दावेदार थे। अब यह सभी रेस से बाहर हो चुके हैं। अब इनकी नजर अपने करीबी लोगों पर है। जिन्हें ये टिकट दिलाकर सत्ता में बराबर के भागीदार बने रहें।

सांसद निरहुआ का दाव फेल
आरक्षण ने सबसे बड़ा झटका बीजेपी सांसद दिनेश लाल यादव निरहुआ को दिया है। सांसद अपने प्रतिनिधि संतोष श्रीवास्तव को मैदान में उतारना चाहते थे। संतोष के पोस्टर और होर्डिंग से शहर पट गया था। सांसद की पैरवी के कारण उनका टिकट भी पक्का माना जा रहा था। अब आरक्षण ने इनकी भी गणित बिगाड़ दी है।

आप के एकलौते उम्मीदवार भी रेस से बाहर
आम आदमी पार्टी से गोविंद दुबे टिकट की दावेदारी कर रहे थे। गोंविद ने अभिभावक संघ का गठन कर पांच साल तक शिक्षा में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी। ऐसे में उनकी जनता में पैठ भी। पार्टी ने इन्हें तैयारी की हरी झंडी भी दे चुकी थी। अब इन्हें भी भारी चपत लगी है।

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सपा के लिए बढ़ी चुनौती
आरक्षण ने समाजवादी पार्टी की चुनौती भी बढ़ा दी है। आरक्षण के कारण निर्वतमान अध्यक्ष शीला श्रीवास्तव उनके पुत्र प्रणीत श्रीवास्तव हनी, जोरार खान, परवेज अहमद टिकट की रेस से बाहर हो गए हैं। पद्माकर लाल वर्मा टिकट मांग रहे हैं। पार्टी उन्हें पिछला चुनाव लड़ाकर देख चुकी है। उनका प्रदर्शन काफी खराब था। नए दावेदारों में सभासद भेल्लर यादव, अमित यादव टिकट मांग रहे हैं। अमित का हाल ही में गाली-गलौज का वीडियो वायरल हुआ है। अब पार्टी के सामने चुनौती है कि किसे चुने जो उसका खाता खोल सके।

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दीनू की मजबूत हुई दावेदारी
अभिषेक जायसवाल दीनू की मां इंदिरा जायसवाल बीजेपी से नगर पालिका अध्यक्ष रह चुकी हैं। दीनू पिछले दिनों सपा के नेताओं के साथ दिखे तो उनकी दावेदारी को कमजोर माना जा रहा था। अब सारे सवर्ण मैदान से बाहर हैं। दीनू पहले ही कह चुके हैं कि पार्टी अगर टिकट नहीं देती है तो वे निर्दल लड़ेंगे। वहीं पार्टी में कोई इतना मजबूत दावेदार पिछड़ी जाति से अभी मैदान में नहीं आया। ऐसे में इनकी दावेदारी मजबूत हई है।

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दिलचस्प होगा चुनाव
निकाय चुनाव में जो लोग सालों से मेहनत कर रहे थे। आरक्षण ने उन्हें बाहर का रास्ता दिख दिया है। अब सभी दलों को नए सिरे से प्रत्याशी का चयन होगा। जो हालात हैं उसमें ज्यादातर नए चेहरों के सामने आने की उम्मीद है। ऐसे में यह चुनाव दिलचस्प हो सकता है।

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