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आजमगढ़

बस यही फिट है, जीत गया तो कुर्सी समझे हमारी

निकाय चुनाव में आरक्षण के बाद नई रणनीति पर काम शुरू हो गया है। मैदान से बाहर हुए मठाधीश अब ऐसे प्रत्याशी को लड़ाना चाहते हैं जिसके जीतने पर सत्ता की चाभी उन्हीं के पास रहे।

आजमगढ़Dec 07, 2022 / 05:15 pm

Ranvijay Singh

प्रतीकात्मक फोटो

प्रतीकात्मक फोटो

निकाय चुनाव में आरक्षण के बाद सीटों की स्थिति साफ हो गई है। आरक्षण से अगर कुछ दावेदारों को खुला मैदान मिल रहे है तो कुछ के सपने भी टूट गए हैं। वैसे मैदान से बाहर हुए खिलाड़ी अब भी हार नहीं मानें हैं। अब वे अपने करीबी को मैदान में उतारने की जद्दोजहद में जुट गए हैं। ताकि सत्ता की चाभी उनके पास ही रहे।


तीन नगरपालिका क्षेत्रों में आरक्षण की स्थिति
आजमगढ़ जिले में तीन नगरपालिका क्षेत्र हैं। आजमगढ़ नगरपालिका को अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित किया गया है। मुबारकपुर सीट महिलाओं के लिए आरक्षित की गई है। पहली बार नगरपालिका बनी बिलरियागंज को अनुसूचित जाती के लिए आरक्षित कर दिया गया है।

मुस्लिम बाहुल्य सीट हैं मुबारकपुर और बिलररियागंज
मुबारकपुर व बिलरियागंज सीट मुस्लिम बाहुल्य सीट है। मुबारकपुर सीट महिला के लिए आरक्षित है। अब सभी दावेदार अपनी पत्नी अथवा घर की अन्य महिला को मैदान में उतारने की तैयारी में जुट गए हैं। वहीं बिलरियागंज में अब अनुसूचित जाति के प्रत्याशियों की तलाश शुरू हो गई है। दावेदार अपने करीबी को प्रत्याशी बनाने की जोड़तोड़ में जुटे हैं। एआईएमआईएम ने सतेंद्र कुमार गौतम को प्रत्याशी बना दिया है। बाकी दलों ने अभी पत्ता नहीं खोला है।

आजमगढ़ में करीबी की तलाश तेज
आजमगढ़ सीट पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित है। यहां डेढ़ दर्जन दावेदार मैदान से बाहर चुके हैं। अब तक जो दावेदारी कर रहे थे वे किसी न किसी बड़ी नेता, मंत्री अथवा विधायक के करीबी थी। अब इन्हें नए सिरे से प्रत्याशी की तलाश करनी पड़ रही है। सभी ऐसा दावेदार खोज रहे हैं जो उनका करीबी हो जीतने के बाद सत्ता की चाभी उन्हीं के हाथ में सौंप दें।

 

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पुराना है सत्ता की चाभा जेब में रखने का खेल
सत्ता की चाभी अपने पास रखने का खेल पुराना है। मार्टीनगंज, जहानागंज, सठियांव सहित ऐसे कई ब्लाक हैं जहां ब्लाक प्रमुख कोई और है लेेकिन कार्यालय में कर्सी कोई और संभालता है। अब यह खेल निकाय चुनाव खेलने की तैयारी हो रही है। हर बड़ा नेता एक ऐसा प्रत्याशी खोज रहा है जो उसकी जेब का हो।

 

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क्या कहते हैं राजनीति के जानकार
राजनीति में गहरी पकड़ रखने वाले सुरेश शर्मा, रामजीत सिंह कहते हैं कि यह हमेशा से होता रहा है। चुनाव में टिकट का आधार ही पैरवी होता है। जितने भी बड़े नेता हैं वे अपने क्षेत्र पर पकड़ बनाए रखना चाहते हैं। यही वजह है कि वे जेब के व्यकित को मैदान में उतारते हैं। पूर्व मंत्री बलराम यादव ने अपने प्रतिनिधि हवलदार यादव को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाए थे।

पिछले नगपालिका चुनाव में पूर्व मंत्री दुर्गा प्रसाद यादव ने अपने करीबी पदमाकर लाल को सपा से टिकट दिलाया था। इस बार भी अगर ऐसा हो रहा है तो अप्रत्याशित नहीं है। ऐसा तो होना ही है। कारण कि अगर कोई दूसरा जीतता है तो जो दावेदार आरक्षण की वजह से छटें है उनके लिए अगले चुनाव में भी दरवाजे बंद हो जाएंगे।

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