वैसे तो पीएम मोदी की रैली शहर से करीब 15 किमी दूर मंदुरी में है लेकिन ऐसा लग रहा है मानों शहर में मोदी आ रहे हैं। शहर के सभी चौराहो पर पीएम को सुनने के लिए पहले ही एलईडी वैन लगा दी गयी थी। चारो तरफ अगर कुछ दिख रहा था तो भगवा झंडा। सुबह नौ बजे के बाद ही कार्यकर्ताओं का मंदुरी पहुंचना शुरू हो गया। मऊ, बलिया, गाजीपुर, जौनपुर आदि जिलों के लोग जिला मुख्यालय से होकर रैली के लिए गुजरे। हालत यह रही कि चारो तरफ जाम नजर आया। वहीं गोरखपुर, सुल्तानपुर, अंबेडकर नगर के लोगों के कारण आजमगढ़ फैजाबाद नेशनल हाइवे सुबह से ही जाम रहा। रैली स्थल पर ऐसा लगा मानों सैलाब सा उमड़ पड़ा था। आयोजकों द्वारा करीब सवा लाख कुर्सी लगाई गई थी लेकिन भीड़ इससे कहीं ज्यादा थी।
मोदी से पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और एचडी देवगौड़ा ने भी इस जिले का दौरा किया था लेकिन उनकी रैली में इस तरह की भीड़ नहीं दिखी थी। सपा और बसपा की ही रैली में एक लाख या इसके आसपास भीड़ देखने को मिलती थी। इसके अलावा वर्ष 1989 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी की रैली में लाखों की भीड़ देखने को मिली थी। रहा सवाल भाजपा का तो इस दल के बड़े से बड़े नेता कभी 20 से 25 हजार की भीड़ नहीं जुटा पाते थे। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के समय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने आईटीआई मैदान में अटल विहारी वाजपेयी के बाद सबसे अधिक भीड़ इकट्ठा की थी लेकिन मोदी के रैली ने कई रिकार्ड ध्वस्त कर दिये।
रैली की भीड़ ने भाजपाइयों को भी खुश होने का अवसर दे दिया है। वे इसे विपक्षी दलों की गोलबंदी के जवाब के रूप में देख रहे हैं। राजनीति के जानकारों का भी मानना है कि पीएम मोदी अपनी रैली के माध्यम से विपक्ष और आम जनमानस को यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि अभी उनका मैजिक कम नहीं हुआ है बल्कि देश की आवाम का उनपर विश्वास कायम हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सारी गोलबंदी के बाद भी विपक्ष की राह आसान होने वाली नहीं है।