बता दें कि कभी मुख्तार परिवार को पूर्वांचल में सिक्का चलता था। मुख्तार अंसारी ने स्वयं कौमी एकता दल का गठन किया था। मुख्तार परिवार गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़ से लेकर वारणसी तक की राजनीति को प्रभावित करता रहा है। मुख्तार स्वयं तो मऊ सीट से लगातार जीतते ही रहे हैं। उनके भाई अफजाल गाजीपुर से बसपा के सांसद हैं। मुख्तार के बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट से विधायक रह चुके हैं। यहीं नहीं मायावती ने पिछले चुनाव में मुख्तार के पुत्र अब्बास अंसारी को भी घोसी से मैदान में उतारा था लेकिन वे भाजपा के फागू चौहान से हार गए थे।
पूर्वांचल में मुख्तार के प्रभाव को देखते हुए ही वर्ष 2016 में शिवपाल यादव ने पूर्व मंत्री बलराम यादव की मदद से मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का विलय सपा में कराया था। उस समय अखिलेश सूबे के मुखिया थेे। उन्हें यह विलय मंजूर नहीं है। इसे लेकर सपा में काफी विवाद हुआ और अखिलेश यादव ने शिवपाल और बलराम यादव को मंत्रीमंडल से हटा दिया था। यह अलग बात है कि बाद में सपा मुखिया मुलायम सिंह के हस्तक्षेप के बाद बलराम को दोबारा मंत्री बना दिया गया था। उस समय अखिलेश यादव मुलायम के स्थान पर खुद को सपा का अध्यक्ष बना दिये थेे। इसके बाद शिवपाल गुट ने पार्टी छोड़ दी थी और प्रसपा का गठन किया था।
परिवार के झगड़े और शिवपाल के अलग होने का खामियाजा वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा को भुगतना पड़ा था। पार्टी 50 सीटों का आंकड़ा भी नहीं छू पाई थी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन हुआ तो अखिलेश यादव ने गाजीपुर में बसपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी का प्रचार किया तो उनकी खूब किरकिरी हुई। खुद शिवपाल ने भी इसपर सवाल उठाया था। अब यूपी सरकार माफिया मुख्तार अंसारी के पूरे साम्राज्य को ध्वस्त करने में जुटी है। अब तक मुख्तार और उनके करीबियोें की अरबों की संपत्ति जब्त हो चुकी है। परिवार राजनीति में हाशिए पर दिख रहा है।
ऐसे में अखिलेश का मुख्तार के भाई सिबगतुल्लाह अंसारी और उनके पुत्र को सपा में शामिल करना चर्चा का विषय बना हुआ है। अंदरखाने सेे सपा में ही यह सवाल उठ रहा है कि जब मुख्तार के परिवार को शामिल ही करना था तो विलय को लेकर तब इतना बवाल क्यों हुआ। शिवपाल ने भी तो वही किया था जो आज अखिलेश कर रहे हैं। यह अलग बात है कि कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। वहीं विपक्ष को मौका मिल गया है। भाजपा नेता रमाकांत मिश्र का कहना है कि अल्पसंख्यक वोटों को बटोरने के लिए अखिलेश ने अपने सिद्धांत को ताक पर रख दिया है। मुख्तार जैसे अपराधी के खिलाफ हुई कार्रवाई को वह चुनाव में भुनाना चाहते है। उनका असली चेहरा अब सामने आया है। उन्हें मुख्तार से तब भी दुराव नहीं था बल्कि शिवपाल से खतरा महसूस कर रहे थे। इसलिए मुख्तार के बहाने उन्हें किनारे लगा दिया। वहीं सपा के लोग इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। उनका कहना है कि मुखिाया का फैसला सर्वमान्य है।