बरेली की बर्फी, न्यूटन, स्त्री, गैंग आफ वासेपुर समेत अन्य फिल्मों में अपनी कला का लोहा मनवाने वाले bollywood actor Pankaj Tripathi (पंकज त्रिपाठी) के साथ ही मोनल गज्जर इस फिल्म में अहम भूमिका निभा रहे हैं। लाल बिहारी मृतक की कर्मभूमि भले ही आजमगढ़ है पर इसकी शूटिंग लखनऊ व सीतापुर में की गयी है। इस फिल्म को लेकर जिले के लोग भी उत्साहित हैं।
लालबिहारी के मुताबिक फिल्म में वह सब कुछ होगा, जो हमारे संग हुआ। फिल्म चटपटा तो होगा ही, पर कहानी बहुत कुछ मिलती-जुलती होगी। इसमें उनके 41 वर्ष के संघर्ष को काफी अच्छे ढंग से दर्शाया गया है।
बता दें कि लाल बिहारी का जन्म 1955 में ग्राम खलीलाबाद संजरपुर थाना निजामाबाद में हुआ था। आठ माह की अवस्था में पिता चौथी का देहांत हो गया। इसके बाद लाल बिहारी की परवरिश अमिलो में हुई। बनारसी साड़ी के कारोबार में बतौर बाल श्रमिक मेहनत मजदूरी करते रहे। 21 वर्ष के हुए तो हथकरघा वास्ते मुबारकपुर स्टेट बैंक से लोन के लिए पहुंचे। पहली बार उनसे यहां पहचान के रूप में जाति प्रमाण पत्र की मांग की गई। इसके बाद प्रमाण पत्र बनवाने के लिए तहसील गए तो लेखपाल ने उन्हें दस्तावेज में मृत घोषित बताया।
यह जानकारी पाकर वह भौचक रह गए। इसके बाद कानून का दरवाजा खटखटाने की सोची लेकिन हिम्मत नहीं जुटा सके। जब उन्हें यह पता चला कि एक-दो नहीं, बहुतायत लोग उनकी तरह ही कागज में मृतक घोषित हैं। फिर क्या इसके बाद संघर्ष की ठान ली। राष्ट्रपति, पीएम तक पत्र लिखा। मृतक संघ का गठन किया। प्रदेश स्तर पर धरना-प्रदर्शन किया। इसका असर रहा कि विधानसभा में जगदंबिका पाल ने इस मामले को उठाया। इतना ही नहीं लाल बिहारी ने नौ सितंबर को विधानसभा में मृतक की समस्या से जुड़ी पर्ची भी फेंकी। उन्हें मारा-पीटा गया, गिरफ्तारी हुई।
1994 में तत्कालीन डीएम हौसला प्रसाद वर्मा ने उन्हें दस्तावेज में जिंदा घोषित कराया। जीत लाल बिहारी की हुई पर वह स्वयं की जीत से ही संतुष्ट नहीं हुए, बल्कि अपने सरीखे अन्य साथियों को भी जिंदा करने के लिए संघर्ष जारी रखा। सैकड़ों को दस्तावेज में अब तक जिंदा करा चुके हैं लेकिन संघर्ष को अभी विराम नहीं दिया है। संघर्ष जारी है। जीवन की अंतिम यात्रा तक वह अपने सरीखे सभी साथियों को न्याय दिलाने को संकल्पबद्ध हैं। इनके सघर्ष से प्रेरित होकर सतीश कौशिक ने दस साल पहले फिल्म बनाने का फैसला किया जो अब मूर्त रूप ले चुका है।
फिल्म में आजमगढ़ के कलाकार भी लाल बिहारी मृतक पर बन रही फिल्म में नामीगिरामी कलाकारों के साथ आजमगढ़ के नाट्य मंच सूत्रधार से जुड़े कुछ कलाकारों को भी अहम भूमिका मिली है। इसमें ममता पंडित, अभिषेक पंडित सरीखे कई लोग शामिल हैं। इसके अलावा कई और नाम की भी चर्चा है।
बदला गया नाम पहले इस फिल्म का नाम ’मैं जिंदा हूं’ रखा गया था। इसके बाद ’कागज’ रख दिया गया है। हालांकि अभी इसमें फेरबदल की बात कही जा रही है। बहरहाल, लाल बिहारी मृतक की कहानी बडे़ पर्दे पर देखने को आजमगढ़ ही नहीं पूरा प्रदेश आतुर है, क्योंकि लाल बिहारी का मृतक संघ पूरे प्रदेश में संघर्ष कर रहे हैं।
By Ran Vijay Singh